बुधवार, 24 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(१००/१०२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
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*कागद काले कर मुए, केते वेद पुराण ।*
*एकै अक्षर पीव का, दादू पढै सुजान ॥१००॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! कितने ही पंडित वेद और पुरानों को लिख - लिख कर अर्थात् काले कागज कर - करके मर गये हैं, कुछ भी हाथ नहीं पड़ा । वही मनुष्य चतुर व सुजान है, जो जन्म प्राप्त करके पीव, कहिए मुख प्रीति का अविषय आत्मारूप परमेश्‍वर के एक अक्षर रूप ओम् या ररंकार, सोऽहं इत्यादि, शब्दों को श्रद्धा से पढ़ता है अर्थात् विचार करता है, वही परम पद को प्राप्त होता है ॥१००॥ 
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*एकै अक्षर प्रेम का, कोई पढेगा एक ।*
*दादू पुस्तक प्रेम बिन, केते पढ़ैं अनेक ॥१०१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! मुखप्रीति का विषय जो परमेश्‍वर है, उसका एक अक्षर स्वरूप ओम्, इसको कोई उत्तम पुरुष श्रद्धा भक्ति से स्मरण करेगा । और तो अनेकों मनुष्य प्रेम के बिना दिखावे के लिये अथवा सकाम भावना से पुस्तक पढ़ते हैं, परन्तु वह वास्तविक फल से वंचित ही रहते हैं ॥१०१॥ 
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*दादू पाती प्रेम की, बिरला बांचै कोइ ।*
*बेद पुरान पुस्तक पढै, प्रेम बिना क्या होइ ॥१०२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! विरह सहित प्रेम की पत्रिका तो कोई बिरले भक्त ही गोपियों की तरह बांचते हैं । प्रेम के बिना रोजी चलाने के लिये, सकाम भावना से, अनेकों पंडित वेद पुराण आदि धार्मिक पुस्तकों को, पढ़ते हैं, परन्तु इससे मोक्ष - फल प्राप्त नहीं होता ॥१०२॥ 
(क्रमशः)

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