॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= साँच का अंग १३ =*
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*ब्रह्मा विष्णु महेश का, कौन पंथ गुरुदेव ।*
*सांई सिरजनहार तूं, कहिये अलख अभेव ॥११२॥*
टीका ~ हे वादी ! ब्रह्मा, विष्णु, महेश इनका कौनसा पंथ था ? और इनका गुरुदेव कौन था ? तू विचार कर । वह सांई परमेश्वर सबको उत्पन्न करने वाला, अलख, मन वाणी का अविषय कहिए, उसी के पंथ में ये सब हैं और वही इन सबका अन्तःप्रेरक गुरुदेव है । वही हमारा गुरु है, उसी के पंथ में हम हैं ॥११२॥
नेति नेति जेहि वेद निरूपा । निजानन्द निरूपाधि अनूपा ॥
संभु विरंचि विष्नु भगवाना । उपजहिं जासु अंस तैं नाना ॥
- बालकाण्ड(तुलसी)
कवित्त ~
ब्रह्मादिक गुरु कौन, कौन गुरु आदि महेश्वर ।
सनकादिक गुरु कौन, कौन गुरु नौ जोगेश्वर ॥
ऋषभ देव गुरु कौन, कौन गुरु जनक विदेही ।
कदरज का गुरु कौन, पिंगला रूप सनेही ॥
ऋषि जड़भरत पुरुरवा, कहै बालकराम विवेक उर ।
अष्टावक्र दत्त कपिल के, कौन मंत्र उपदेश गुर ?
ब्रह्मऋषि से वादी ने उपरोक्त साखियों में प्रश्न किया । वैसे ही, बालकराम जी महाराज से किसी पंडित ने प्रश्न किया कि ब्रह्मऋषि दादू दयाल का गुरु कौन हैं ? उसके प्रति उत्तर में बालकराम जी ने कहा ~ उपरोक्त कवित्त में जिन पुरुषों का नाम है, उनका गुरु कौन था ? और कौनसा उनके मंत्र था । पंडित लज्जित होकर बोला - “आप ही कृपा करके बतलावें ।”
कवित्त ~
ब्रह्मादिक गुरु ब्रह्म, ब्रह्म गुरु आदि महेश्वर ।
सनकादिक गुरु ब्रह्म, ब्रह्म गुरु नौ जोगेश्वर ॥
ऋषभ देव गुरु ब्रह्म, ब्रह्म गुरु जनक विदेही ।
कदरज का गुरु ब्रह्म, पिंगला ब्रह्म सनेही ॥
ऋषि जड़भरत पुरुरवा, कहै बालकराम विवेक उर ।
अष्टावक्र दत्त कपिल के, ब्रह्म अनुग्रह ज्ञान गुर ॥
हे भाई ! इन सबके गुरू परमेश्वर ही थे, और उनकी दया की दृष्टि से ही, इनको ज्ञान हुआ और उन्होंने ही अर्न्तज्ञान मंत्र दिया ।
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*मुहम्मद किसके दीन में, जिब्राईल किस राह ?*
*इनके मुर्शिद पीर की, कहिये एक अल्लाह ॥११३॥*
टीका ~ किसी काजी ने ब्रह्मऋषि से प्रश्न किया कि आप किसके दीन में हो ? परम गुरुदेव काजी से बोले ~ हे काजी ! मोहम्मद साहब किसके दीन में थे ? जिब्राईल फरिश्ता किस के मार्ग में चले ? इनका पीर कौन था ? काजी नम्र होकर बोले ~ आप ही कृपा करें । तब परम गुरुदेव बोले ~ हे काजी ! इनका गुरु पीर एक अल्लाह, कहिए तल स्पर्श रहित एक परमात्मा ही था, उसी के दीन में हम हैं ॥११३॥
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*दादू ये सब किसके ह्वै रहे, यहु मेरे मन मांहि ।*
*अलख इलाही जगत - गुरु, दूजा कोई नांहि ॥११४॥*
टीका ~ उपरोक्त सम्पूर्ण प्रकरण का भावार्थ ~ ब्रह्मा, विष्णु, महादेव का कौन पंथ है ? और मोहम्मद का धर्म क्या है ? एवं जिब्राईल धर्मराज फरिश्ता की कौन राह है ? इनके मुर्शिद कहिए गुरु किस पंथ में हैं ? हे जिज्ञासु ! चराचर, लौकिक, अलौकिक, सभी पदार्थ चैतन्य की सत्ता मात्र से सब समान हैं । उत्तम पुरुषों को एक परमात्मा का ही पतिव्रत है ॥११४॥
(क्रमशः)
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