॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= साँच का अंग १३ =*
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*बेखर्च व्यसनी*
*दादू बगनी भंगा खाइ कर, मतवाले मांझी |*
*पैका नांही गांठड़ी, पातशाह खांजी ||१०९||*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! भांग आदि का नशा करके मतवाले हो रहे हैं | अर्थात् अनेक प्रकार के विषयों में फँस कर, विषय - रस को पान करके मतवाले मांझी बन रहे हैं | एक पैसा तो पास में है नहीं और मन में बादशाह और खांसाहब बन रहे हैं | ऐसे पुरुष ईश्वर विमुख ही सदा बने रहते हैं ||१०९||
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*दादू टोटा दालिदी, लाखों का व्यौपार |*
*पैका नांही गांठड़ी, सिरै साहूकार ||११०||*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! टोटा तो इतना है, जो एक पैसा भी पास में नहीं है | ऐसे दरिद्री लोग बातों में लाखों का व्यापार करते हैं और साहूकारों में अपने आपको सबसे श्रेष्ठ बतलाते हैं | इसी प्रकार वाचक ज्ञानी वेदों का शब्द - ज्ञान करके अति अभिमानी हो रहे हैं एवं भक्ति - ज्ञान वैराग्य का उनमें अंश मात्र भी नहीं है | जो करणी रूप धारणा से तो अति दरिद्री विषयी हैं, परन्तु वाचक उपदेश से अपने को ज्ञानी मानते हैं, ऐसे वाचक ज्ञानियों का कल्याण होना असम्भव है ||११०||
ज्ञान ध्यान रेचक नहीं, नहीं सील संतोंष |
भगत कहावै राम को, ‘मोहन’ व्यर्थ भरोस ||
निम्नलिखित चार साखियां प्रश्नोत्तर रूप में हैं |
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*मध्य निष्पक्ष - सब मतों का निशाना एक*
*दादू ये सब किसके पंथ में, धरती अरु आसमान |*
*पानी पवन दिन रात का, चंद सूर रहमान ||१११||*
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव से किसी वादी ने प्रश्न किया कि आप किसके पंथ में हैं ? तब सतगुरुदेव बोले ~ हे वादी ! यह धरती, आकाश, चन्द्रमा, सूर्य, पानी, पवन, दिन, रात जिसके पंथ में हैं, उसी रहमान, परमेश्वर की आज्ञारूप पंथ में हम हैं ||१११||
हिन्दू तुर्क न भूमि, तुर्क हिन्दू नहिं पानी |
हिन्दू तुर्क न अग्नि, समझ बिन दुखी अज्ञानी ||
हिन्दू तुर्क न पवन, तुर्क हिन्दू न अकासा |
चन्द सूर निर्पक्ष, रात दिन करैं प्रकासा ||
एक आतमा सर्व में, हिन्दू तुर्क न जानिये |
कहिं ‘बालकराम’ पायो मरम, वर्ण आश्रम भ्रम भानिये ||
(क्रमशः)
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