गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(१०९/११)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
*बेखर्च व्यसनी*
*दादू बगनी भंगा खाइ कर, मतवाले मांझी |* 
*पैका नांही गांठड़ी, पातशाह खांजी ||१०९||* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! भांग आदि का नशा करके मतवाले हो रहे हैं | अर्थात् अनेक प्रकार के विषयों में फँस कर, विषय - रस को पान करके मतवाले मांझी बन रहे हैं | एक पैसा तो पास में है नहीं और मन में बादशाह और खांसाहब बन रहे हैं | ऐसे पुरुष ईश्‍वर विमुख ही सदा बने रहते हैं ||१०९|| 
*दादू टोटा दालिदी, लाखों का व्यौपार |* 
*पैका नांही गांठड़ी, सिरै साहूकार ||११०||* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! टोटा तो इतना है, जो एक पैसा भी पास में नहीं है | ऐसे दरिद्री लोग बातों में लाखों का व्यापार करते हैं और साहूकारों में अपने आपको सबसे श्रेष्ठ बतलाते हैं | इसी प्रकार वाचक ज्ञानी वेदों का शब्द - ज्ञान करके अति अभिमानी हो रहे हैं एवं भक्ति - ज्ञान वैराग्य का उनमें अंश मात्र भी नहीं है | जो करणी रूप धारणा से तो अति दरिद्री विषयी हैं, परन्तु वाचक उपदेश से अपने को ज्ञानी मानते हैं, ऐसे वाचक ज्ञानियों का कल्याण होना असम्भव है ||११०||
ज्ञान ध्यान रेचक नहीं, नहीं सील संतोंष | 
भगत कहावै राम को, ‘मोहन’ व्यर्थ भरोस || 
निम्नलिखित चार साखियां प्रश्‍नोत्तर रूप में हैं | 
*मध्य निष्पक्ष - सब मतों का निशाना एक* 
*दादू ये सब किसके पंथ में, धरती अरु आसमान |* 
*पानी पवन दिन रात का, चंद सूर रहमान ||१११||* 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव से किसी वादी ने प्रश्‍न किया कि आप किसके पंथ में हैं ? तब सतगुरुदेव बोले ~ हे वादी ! यह धरती, आकाश, चन्द्रमा, सूर्य, पानी, पवन, दिन, रात जिसके पंथ में हैं, उसी रहमान, परमेश्‍वर की आज्ञारूप पंथ में हम हैं ||१११|| 
हिन्दू तुर्क न भूमि, तुर्क हिन्दू नहिं पानी | 
हिन्दू तुर्क न अग्नि, समझ बिन दुखी अज्ञानी || 
हिन्दू तुर्क न पवन, तुर्क हिन्दू न अकासा | 
चन्द सूर निर्पक्ष, रात दिन करैं प्रकासा || 
एक आतमा सर्व में, हिन्दू तुर्क न जानिये | 
कहिं ‘बालकराम’ पायो मरम, वर्ण आश्रम भ्रम भानिये ||
(क्रमशः)

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