शनिवार, 27 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(११८/१२०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
*भ्रम विध्वंसण*
*अपनी अपनी जाति सौं, सब को बैसैं पांति ।* 
*दादू सेवग राम का, ताके नहीं भरांति ॥११८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अपनी - अपनी जाति में सब कोई मिलकर बैठते हैं, परन्तु राम के सेवक जो हैं, वे किसी से भेद भ्रान्ति नहीं करते । केवल एक राम की सत्ता को सर्वत्र अनुभव करते हैं ॥११८॥ 
*चोर अन्याई मसखरा, सब मिलि बैसैं पांति ।* 
*दादू सेवक राम का, तिन सौं करैं भरांति ॥११९॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी संसारीजन जातीय पक्षपात करके चोर, अन्यायी, मखौली, सबको अपनी पंगति में बैठाते हैं, किन्तु परम पवित्र भक्तों से भ्रान्ति करते हैं । तथापि मुमुक्षुजन, “ईश्‍वर की ही व्यापकता का निश्‍चय करके सब प्राणियों में समता का भाव रखते हैं ॥११९॥” 
धाम सौंप शिष्य को गयो, तीरथ बद्रीदास । 
फिर आयो बहु काल में, रोटी देत उदास ॥ 
दृष्टान्त ~ एक बद्रीदास नाम का बैरागी साधु था । उसके मन्दिर, जमीन जायदाद बहुत थी । उसके एक चेला था । चेला जब बड़ा हो गया, तब बद्रीदास बोले ~ “भाई ! यह मन्दिर, जमीन, जायदाद, यह नकद रुपया, तू संभाल और मैं चार धाम तीर्थ करने जा रहा हूँ ।” 
बद्रीदास यात्रा करने चल पड़े । जहाँ - तहाँ भ्रमण करता हुआ चारों धाम करके बहुत काल में वापिस लौटा । पीछे से चेले ने अपनी शादी कर ली । दो चार बाल - गोपाल हो गये । परन्तु उसकी स्त्री बड़ी फूहड़ थी । कहीं मन्दिर में मक्खियां भिन - भिना रही हैं, कहीं गन्दगी पड़ी है, कहीं जूठे बर्तन पड़े हैं, कहीं कुत्ते चाट रहे हैं । ‘फूहड़ चालै नौ घर हालै’ - ऐसा हाल हो रहा था । 
उधर से बद्रीदास जी सांयकाल को आये । जब मन्दिर में घुसने लगे, तब वह बोली ~ “कहाँ घुसता है अन्दर ? कुछ उठा कर ले जाएगा क्या ? बाहर बैठ ।” बद्रीदास इधर - उधर देखने लगे । इतने में चेला आया, बद्रीदास को नमस्कार, प्रणाम नहीं किया और टेढा - मेढा देखता हुआ मन्दिर में चला गया । 
तब बद्रीदास बोले ~ “भाई ! देख, ठाकुर जी का मन्दिर है, इसमें पवित्रता रहनी चाहिये । पहले हम कैसी पवित्रता रखते थे । अब यह तैंने क्या कर रखा है ?” चेला बोला ~ “अब ठाकुर जी इसी प्रकार राजी हैं, तुम्हारी पवित्रता से राजी नहीं हैं । अपनी पवित्रता अपने पास रखो ।” दो रोटी फेंक कर मारी “खाले, खानी हैं तो; नहीं तो अपनी झोंपड़ी अलग बांध ले ।” रोटी देने में भी उदासीनता दिखलाता है । स्त्री के भाई - बन्धु आये, उनसे प्यार करने लगा । बद्रीदास देखकर उदास हो गये । सांसारिक प्राणी राम के सेवकों से भ्रान्ति करते हैं । 
*दादू सूप बजायां क्यों टलै, घर में बड़ी बलाइ ।* 
*काल झाल इस जीव का, बातन ही क्यों जाइ ?१२०॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! संसारी जीव मंत्र, तंत्र, सकाम कर्मों का अनुष्ठान करने से ही अन्तःकरण के काम, क्रोध, लोभ, मोह, विषय - वासना रूप काल की झाल से नहीं बचेंगे । केवल शब्दों के ज्ञान से ही इनको हटाना चाहे तो, यह तो सूप का बजाना है । जैसे किसी के घर में शेर आ घुसे और वह सूप बजाकर निकालना चाहे, तो वह नहीं निकलता, वह तो उनको भक्षण ही कर जाएगा । ऐसे ही आशा - तृष्णा रूप काल की लपट इस जीव को नहीं छोड़ेगी ॥१२०॥ 
जानि दलिद्र घर तज्यो, फिर्यौ तेल के काज । 
जोड़ी चुपड़त देख तब, पूछी कित जाइ भाज ॥ 
दृष्टान्त ~ एक दुखी मनुष्य अपने घर में दलिद्र का वासा जानकर घऱ का त्याग करके चल दिया । किन्तु जूतियों के तेल लगाने के लिए वापस घर लौटा और अपनी जूतियों को बैठा - बैठा चुपड़ने लगा । इतने में एक पुरुष सामने आकर खड़ा हो गया । बोला ~ “तू मुझे छोड़कर कहाँ भाग रहा है ? मैं तो तेरे साथ ही रहूँगा, तू जहाँ भी जायेगा ।” वह बोला ~ “तू कौन है ?” बोला ~ “मैं तेरा दरिद्र हूँ, तूं मुझे छोड़ता है पर मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा ।” जो पूर्व कर्मों का फल है, वह तो भोगना ही पड़ेगा । भागने से नहीं छूटेगा, भोगने से छूटेगा । 
(क्रमशः)

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