सोमवार, 15 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(५२/५४)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
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*सो दारू किस काम की, जाथैं दर्द न जाइ ।*
*दादू काटै रोग को, सो दारू ले लाइ ॥५२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इन मत - मतान्तरों के झगड़े, खैचा - तानी और सकाम कर्मरूपी साधनों से क्या प्रयोजन है जिनसे जन्म और मरण रूप दुःख नहीं कटते, उल्टे बढ़ते हैं । ऐसे साधनों की साधना करिये, जो संसार - रोग से मुक्त कर देवें । ऐसी वह कौनसी दवा है, जिससे संसार - रोग समूल नष्ट हो जावे ? हे मुमुक्षुओं ! वह ब्रह्मस्वरूप में अपने मन की लय लगाइये ॥५२॥ 
जे तूं काट्यो चाहै विषम व्याधि । 
तौ रामनाम निज औषधि साधि ॥ 
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*दादू अनुभव काटै रोग को, अनहद उपजै आइ ।*
*सेझे का जल निर्मला, पीवै रुचि ल्यौ लाइ ॥५३॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यथार्थ ज्ञान से जन्म - मरण रूपी रोग कटता है और सोऽहंरूप अनहद ध्वनि उत्पन्न होती है । उसमें अद्वैतामृत को अन्तर्मुख वृत्ति से पान करे । वह मायावी जल से रहित अमृत है । उसको पीकर मुमुक्षु तृप्त रहते हैं ॥५३॥ 
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*सोई अनुभव सोई ऊपजी, सोई शब्द तत सार ।*
*सुनतां ही साहिब मिलै, मन के जाहिं विकार ॥५४॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! वही ज्ञान सहित गुरु का आदेश श्रेष्ठ है, जिसके बोलते ही मन के सम्पूर्ण विकार नष्ट हो जायें और श्रवण करते ही अपने स्वस्वरूप आत्मा का साक्षात्कार हो जावे । हे पुरुषों ! यही सत्य अनुभव है ॥५४॥
(क्रमशः)

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