शनिवार, 6 अप्रैल 2013

= माया का अंग १२ =(१७४/१७५)

॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= माया का अंग १२ =*
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*नारी पीवै पुरुष को, पुरुष नारी को खाइ ।*
*दादू गुरु के ज्ञान बिन, दोनों गये विलाइ ॥१७४॥*
रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं, 
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पंकजश्री: ।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे, 
हा ! हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार: ॥ 
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*भँवरा लुब्धी बास का, कमल बँधाना आइ ।*
*दिन दश मांहैं देखतां, दोनों गये विलाइ ॥१७५॥*
इति माया का अंग सम्पूर्ण ॥अंग१२॥ साखी १७५॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिस प्रकार नारी, पुरुष में काम - वासना से और पुरुष नारी में भोग - वासना से आसक्त होकर रज - वीर्य का नाश करते हैं और गुरु के ब्रह्मचर्य उपदेश का पालन किये बिना परमेश्‍वर से दोनों ही विमुख होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं । जैसे सुगन्धि का प्रेमी भँवरा कमल के फूल में आकर सुगन्धि लेता है और मस्त हो जाता है, फिर देखते ही देखते एक दिन हाथी आकर कमल के सहित भँवरे को खा जाता है । इसी प्रकार सतगुरु का ज्ञान प्राप्त किये बिना जीवरूपी भँवरा कमल मुखी स्त्री की बास की आशा में आसक्त रहता है, किन्तु हस्तीरूपी काल इन दोनों को ही नष्ट कर देता है । इसलिए हे साधक पुरुषों! इस माया की रचना से अलग रहकर सतगुरु के उपदेश से सत्य - स्वरूप परमेश्‍वर में स्थित हो जाओ ।
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इति माया का अंग टीका और दृष्टांतों सहित सम्पूर्ण ॥अंग१२॥ साखी १७५॥
(क्रमशः)

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