शनिवार, 6 अप्रैल 2013

= माया का अंग १२ =(१७२/१७३)


॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= माया का अंग १२ =*
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*नारी बैरिन पुरुष की, पुरुषा बैरी नार ।*
*अंत काल दोन्यूं मुये, दादू देख विचार ॥१७२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह राम की माया रूप स्त्री, पुरुष की मीठी शत्रु है और सांसारिक विषयों मे अंधा हुआ पुरुष, स्त्री रूप नारी का मीठा शत्रु है । इसी प्रकार जीवन भर विषय - भोग रूपी काम करते - करते अन्त में दोनों ही मर जाते हैं और आत्मतत्त्व से विमुख हो चले जाते हैं ॥१७२॥ 
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*नारी पुरुष को ले मुई, पुरुषा नारी साथ ।*
*दादू दोनों पच मुये, कछू न आया हाथ ॥१७३॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह राम की माया रूप नारी, मायारूपी पुरुष को अपने प्रेम में लगाकर सत्य मार्ग से गिराती है । सांसारिक विषयों में आसक्त पुरुष के प्रेम में नारी और नारी के प्रेम में पुरुष बंधकर नारी और पुरुष दोनों परमार्थ - मार्ग से च्युत हो गये हैं । जीवन - भर दोनों खोटे कर्म कर - करके अर्थात् व्यर्थ अपनी शक्ति का हनन करके मर गये हैं ॥१७३॥ 
(क्रमशः)

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