रविवार, 7 अप्रैल 2013

= साच का अंग १३ =(१/३)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= साच का अंग १३ =*
.
“दादू सांई सत्य है, दूजा भ्रम विकार.”, इस सूत्र के व्याख्यान स्वरूप माया के अंग के अनन्तर अब साच के अंग का निरूपण करते हैं । साच के अंग में प्रभु के सत्यस्वरूप और उसको अनुभव करने के साधनों का प्रतिपादन करेंगे । परन्तु संसारीजनों को सत्य - स्वरूप का बोध होना कठिन है, फिर भी हरि गुरु संतों की कृपा होने से इस प्राणी को स्वस्वरूप का साक्षात्कार सम्भव है । इसलिए ही अब हरि, गुरु, संतों का मंगल करते हैं ।
.
*मंगलाचरण*
*दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।*
*वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥१॥*
टीका ~ हरि गुरु संतों को हमारी बारम्बार वन्दना है, जिनकी कृपा से मुमुक्षु माया से परे सत्य - स्वरूप परमेश्‍वर का प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं । जिज्ञासुओं में प्रथम दया - भाव होना चाहिए ॥१॥ 
.
*अदया हिंसा*
*दादू दया जिन्हों के दिल नहिं, बहुरि कहावें साध ।*
*जे मुख उनका देखिये, तो लागै बहु अपराध ॥२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिनके अन्तःकरण में दया तो है नहीं और अपने को साधु कहलाते हैं । उनका मुख देखने से भी भारी पाप लगता है ॥२॥ 
प्रविशन्ति यथा नद्यः समुद्रं ऋजुवक्रगाः । 
सर्वे धर्मा अहिंसायां प्रविशन्ति तथा दृढम ॥ 
चोड़ै चुगत कबूतरी, कुतको दियो फकीर । 
जाइ पुकारी राजदर, भेष उतारो चीर ॥ 
दृष्टान्त ~ एक मांस खाने वाला साधु मार्ग में जा रहा था । आगे कबूतर और कबूतरी दाना चुगते थे । साधु ने मन में सोचा कि इन दोनों में से एक की शिकार कर लें । 
कबूतरी ने दूर से उसकी तरफ देखा और कबूतर को बोली ~ यह साधु हिंसक दिखाई पड़ता है, अपन यहाँ से उड़ चलें । कबूतर बोला ~ “नहीं, अगर हम साधु भेष को नहीं मानेंगे, तो हम नास्तिक होंगे ।”
इतने में वह नजदीक आ गया । उसने डंडा घुमाकर फेंका, जो कबूतर के पांवों में लगा और वह मर गया । साधु कबूतर को जेब में रख कर चल पड़ा । कबूतरी पति - वियोग में दुखी होकर उपरोक्त वृत्तान्त राजा को सुनाया । राजा पक्षियों की बोली समझता था । राजा ने तत्काल राजपुरुषों को आदेश दिया कि उस साधु को पकड़ कर लाओ । 
राजपुरुष उसे गिरफ्तार करके राजा के सामने ले आये । उसकी तलाशी ली, तो कबूतर उसके पास मिल गया । राजा न्यायकारी था । विचार किया कि अगर इसको फाँसी की सजा देंगे, तो मनुष्य - हत्या करने वाले को क्या सजा देंगे ? यह सोचकर कबूतरी से पूछा कि इसको क्या सजा दें ? 
कबूतरी ने विचार किया कि पति तो मर गया, इसको मरवा कर मुझे पाप ही मिलेगा । तब बोली ~ राजन् ! इसका भेष उतरवा लिया जावे ताकि आगे कोई धोखे में इसके जाल में नहीं फँसेंऔर इसको आदेश दें कि यदि उस भेष को वापिस पहनेगा तो तुझे प्राण - दंड की सजा होगी । राजा ने वैसा ही किया । “दादू दया जिन्हों के दिल नहीं, ऐसे साधु भेषधारियों का तो मुख देखने का भी धर्म नहीं ।”
.
*दादू महर मोहब्बत मन नहीं, दिल के वज्र कठोर ।*
*काले काफिर ते कहिये, मोमिन मालिक और ॥३॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिनके मन में दया नहीं है, प्यार नहीं है और दिल जिनका वज्र के समान कठोर है, ऐसे मनुष्य पापों से काले और काफिर होते हैं । और परमेश्‍वर को प्राप्त होने वाले मोमिन, कहिए इनसे अलग दैवी - सम्पत्ति को धारण करने वाले भक्त कहे जाते हैं ॥३॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें