गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

= माया का अंग १२ =(१६०/१६२)

॥दादूराम सत्यराम॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= माया का अंग १२ =*
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*नारी नागिन जे डसे, ते नर मुये निदान ।*
*दादू को जीवै नहीं, पूछो सबै सयान ॥१६०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस नारी रूप नागिन से जो डसे गये हैं, वे मनुष्य निश्‍चय करके मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं अर्थात् परमार्थ मार्ग से च्युत हो गए हैं । उनमें से कोई भी परमार्थ मार्ग की तरफ नहीं लगता है । ऐसा सभी सयाने, विवेकी पुरुष कहते हैं ॥१६०॥ 
सुन्दर नारी सर्पिणी, विकट रूप विकराल । 
देखत ही सबको डसै, ‘परसराम’ यहु काल ॥ 
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*नारी नागिन एक सी, बाघिन बड़ी बलाइ ।*
*दादू जे नर रत भये, तिनका सर्वस खाइ ॥१६१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! नारी और काली नागिन दोनों एक सी ही हैं । जिनको ये डसती हैं, निश्‍चय ही मृत्यु पाते हैं । और नारी बड़ी बाघिन(शेरनी) जैसी है, अर्थात् जैसे बाघिन फाड़ कर खा जाती है, ऐसे ही यह मनुष्य के कलेजे को फाड़ देती है । यह भयंकर बला है, लगने के बाद छूटती नहीं । जो मनुष्य इससे रत्त हुए हैं, उनका सर्वस्व खा जाती है अर्थात् परमार्थ - मार्ग से गिरा देती है ॥१६१॥ 
बाघिन नागिन एक सी, मोहिनी वनिता जानि । 
भक्ति मुक्ति जर देह कस, संग करै सब हानि ॥ 
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*नारी नैन न देखिये, मुख सौं नाम न लेइ ।*
*कानों कामिनि जनि सुणै, यहु मन जाण न देइ ॥१६२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस मायारूप स्त्री को काम - वासना रखकर नेत्र से नहीं देखना और न मुख से बात ही करना । अपनी श्रोत्र इन्द्रियों से भी स्त्री - प्रसंग की या श्रृंगार रस की बातें नहीं सुनना । इस मन को किसी भी इन्द्रिय के द्वारा मायारूप स्त्री की तरफ नहीं जाने देना, तभी कल्याण है ॥१६२॥ 
अन्यार्थ ~ नारी के नयन(कटाक्ष) का प्रभाव तो देखिये कि जब वह मुँह से कोई मधुर शब्द का भी उच्चारण नहीं कर रही है और ना ही उसकी रसीली स्वर - ध्वनि हमारे कर्ण पटलों का स्पर्श कर रही है, फिर भी उसकी चपल पलक - झपक मात्र से ही हमारा मन इतना अघिक आकर्षित हो जाता है कि उसके चिन्तन को छोड़ अन्यत्र नहीं जाता । शास्त्र कहते हैं ~ 
“कदापि युवतिं भिक्षु: न स्पृशेद् दाखीमपि । 
स्पृशन् करीब बघ्यते करिण्या अंगसंगत: ॥” 
अर्थात् सजीव नारी का तो क्या, काष्ठ निर्मित नारी - मूर्ति का भी तन से या मन से स्पर्श नहीं करना चाहिए । नहीं तो कागज की हथनी का स्पर्श करने मात्र से ही कामान्ध का हाथी मनुष्य के बन्घन में पड़ जाता है । 
(क्रमशः)

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