मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

= साच का अंग १३ =(१३/१५)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साच का अंग १३ =*
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*दादू दुनियां सौं दिल बांध करि, बैठे दीन गँवाइ ।*
*नेकी नाम बिसार करि, करद कमाया खाइ ॥१३॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सांसारिक विषय भोगों में अपने दिल को लगाकर अज्ञानी जन ईमान और सत्य को खोकर बैठे हैं । भलाई को भूलकर हिंसा की कमाई खा रहे हैं और परमेश्‍वर के नाम को भूल चुके हैं । ऐसे मनुष्य की शक्ल में शैतान बन रहे हैं ॥१३॥ 
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*दादू गल काटैं कलमा भरैं, अया विचारा दीन ।*
*पंचों वक्त नमाज गुजारैं, साबित नहीं यकीन ॥१४॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो असुर प्रमादी लोग हैं, वे जीवों के गले काटते हैं अपने स्वादों के लिये और फिर कलमा पढ़ते हैं । बोलते हैं कि हे मालिक ! यह बेचारा दीन जीव आपके पास बहिश्त में आता है । परन्तु पांचों समय पर वे नमाज गुजारते हैं, मालिक का तो उनको विश्‍वास रत्ती भर भी नहीं है और अनन्त विषय - विकारों में फँसे हुए हैं । ऐसे पुरुषों को ईश्‍वर कभी माफ नहीं करेगा ॥१४॥ 
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*दुनियां के पीछे पड़ा, दौड़ा दौड़ा जाइ ।*
*दादू जिन पैदा किया, ता साहिब को छिटकाइ ॥१५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी संसारीजन नाना प्रकार की कामनाओं को दिल में लेकर दुनियां के पीछे - पीछे दौड़ता रहता है । कभी धन के पीछे दौड़ता है, कभी पीर फकीरों के पीछे दौड़ता है और जिस परमेश्‍वर ने जन्म दिया है, उस परमेश्‍वर का विश्‍वास तो छोड़ दिया है । ऐसे विषयी मनुष्यों को सुख और शांति कहाँ प्राप्त हो सकती है ?।१५॥ 
(क्रमशः)

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