गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(२८/३०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
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*सच्चे मुसलमान के लक्षण*
*मुसलमान जो राखे मान, सांई का माने फरमान ।*
*सारों को सुखदाई होइ, मुसलमान कर जानूँ सोइ ॥२८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! मुसले ईमान अर्थात् वही सच्चा मुसलमान है, जो सबका आदर सम्मान करता है, धर्मनिष्ठ होता है, खुदा की आज्ञा को मानता है । चींटी से हाथी पर्यन्त जीव मात्र को सुख देनेवाला हो, उसे सच्चा मुसलमान समझो । वह किसी भी प्राणी को नहीं सताता है ॥२८॥ 
तुलसी टेरे कहत हूँ, सुनियो संत सुजान । 
भोमिदान गजदान तैं, बड़ो दान सन्मान ॥ 
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*दादू मुसलमान महर गह रहै, सबको सुख, किसही नहिं दहै ।*
*मुवा न खाइ, जीवत नहिं मारै, करै बंदगी, राह संवारै ॥२९॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो प्राणीमात्र पर दया रखता है और सबको सुख पहुँचाता है । किसी को भी कभी दुःख नहीं देता है । मरे हुए जीव के मांस को नहीं खाता है और जीते जीवों को कभी मार कर नहीं खाता है । परमेश्‍वर की बन्दगी, कहिये भक्ति करता है, वही सच्चा मुसलमान इस लोक और परलोक को सफल बनाता है ॥२९॥ 
दया जिन्हों के दिल बसे, दरदबंद दरवेश । 
तुलसी उनको होइगो, भिस्त मांहि परवेश ॥ 
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*सो मोमिन मन में कर जान, सत्य सबूरी बैसे आन ।*
*चलै साच सँवारे बाट, तिनको खुले बहिश्त के पाट ॥३०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सो मोमिन मुसलमान है, जो संतोंष रखता है और सत्य - स्वरूप ईश्‍वर को जानता है । किसी भी प्राणी से अन्याय का व्यवहार कभी नहीं करता, दूसरे के अधिकार को छीनता नहीं, मालिक में अपने मन को स्थिर करता है, ऐसे कोमल हृदय वाले पुरुष को मुसलमान कहते हैं । उनके लिए तो मानो इस संसार में ही बहिश्त(स्वर्ग) का दरवाजा खुला हुआ है ॥३०॥ 
(क्रमशः)

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