गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

= साँच का अंग १३ =(१०६/८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
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*अनाधिकारी*
*दादू कथनी और कुछ, करणी करैं कछु और ।*
*तिन थैं मेरा जीव डरै, जिनके ठीक न ठौर ॥१०६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! कहते तो कुछ और हैं और करते कुछ और हैं, ऐसे पुरुषों से हमारा जीव डरता है, क्योंकि उनका कोई ठीक ठिकाना नहीं है । वे बाचाल लोग हैं ॥१०६॥ 
वाक्य मांहि जो देखिये, गात मांहि सो नांहि । 
जन रज्जब ता सब्द सौं, सुरता ठहरै नांहि ॥ 
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*अन्तरगत औरै कछु, मुख रसना कुछ और ।*
*दादू करणी और कुछ, तिनको नांही ठौर ॥१०७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अन्तःकरण में तो कपट भरी और ही बातें हैं, और मुख से रसना द्वारा कुछ और ही बात बोलते हैं, शरीर द्वारा कुछ और ही करते हैं । ऐसे पुरुषों को परमेश्‍वर के दरबार में कोई जगह नहीं है । वे जन्म - मरण के चक्र में ही घूमते रहते हैं ॥१०७॥ 
मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम् । 
मनस्यन्यद वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यद् दुरात्मनाम् ॥ 
(महात्माओं के मन वचन कर्म इकसार होते हैं, जबकि दुष्टों के मन वचन कर्म में भिन्नता होती है ।)
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*मन प्रबोध*
*दादू राम मिलन की कहत हैं, करते कुछ औरे ।*
*ऐसे पीव क्यौं पाइये, समझि मन बौरे ॥१०८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! कनिष्ठ श्रेणी वाले जो मनुष्य हैं, वे आत्मा की तो चर्चा करते हैं, और उनका व्यवहार सांसारिकजनों की तरह देखने में आता है, उनको आत्म - साक्षात्कार किस प्रकार होगा ? हे भोले ! अज्ञानी मन ! अर्थात् हे प्राणधारी ! यह सत्य समझ कि करणी बिना केवल कथनी से आत्म - प्राप्ति नहीं होगी ॥१०८॥ 
कर्म करे मन मंद अति, चाहे दरस गंभीर । 
रांधी खाटी राबड़ी, कैसे खावै खीर ॥
(क्रमशः)

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