रविवार, 7 अप्रैल 2013

= साच का अंग १३ =(४/६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= साच का अंग १३ =*
.
*दादू कोई काहू जीव की, करै आत्माघात ।*
*साच कहूँ संशय नहीं, सो प्राणी दोज़ख जात ॥४॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! कोई भी मनुष्य किसी भी जीव की जो हिंसा करेगा अर्थात् मारेगा, वह मनुष्य अवश्य नरक की त्रास भोगेगा । हम सत्य कहते हैं, इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है ॥४॥
If anyone takes the life of any other creature,
That person goes to hell; I tell you
the truth, there is no doubt about it, 
says Dadu. 
शुक्रशोणितसंभूतं ये नरा भुंजते फलम् । 
नरकात् नातिवर्तन्ते यात चन्द्रदिवाकरौ ॥ 
असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः । 
तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ॥ 
(आत्मा की हत्या करने वाले मनुष्य मरणोपरान्त अंधकारपूर्ण भयंकर आसुरी लोकों में अत्यन्त कष्ट भोगते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है ।) 
- महाभारत
मद पीवै मूरति हतै, रसन स्वाद कर खाँय । 
जगन्नाथ ते अवसि कर, दोजग ही को जाय ॥ 
.
ब्रह्मऋषि दादूदयाल महाराज के उपर्युक्त अहिंसा उपदेश को सुनकर, सांभर शहर में काजी मुल्लाओं ने अपने धर्म की महानता का वर्णन करते हुए कहा कि हमारे यहाँ तो कुर्बानी करते हैं और मांस खाते हैं । तब महाराज ने कहा ~
*दादू नाहर सिंह सियाल सब, केते मुसलमान ।*
*मांस खाइ मोमिन भये, बड़े मियां का ज्ञान ॥५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जैसे पशुओं में नाहर, सिंह, गीदड़, वे सब मांस खाने वाले जानवर हैं । ऐसे ही हे काजियों ! हे मुल्लाओं ! कितने ही मुसलमान मांस खाते हैं, जीव - हिंसा करते हैं और फिर अपने को मोमिन कहलाते हैं, परन्तु यह ज्ञान तो बड़े मियां मोहम्मद साहब का नहीं है । वे तो प्राणी मात्र से प्यार करते थे ॥५॥ 
पश्‍चात भवन्ति जात्यन्धाः काणाः कुब्जाश्र्य पंगवः । 
दरिद्रा अंगहीनश्र्य पुरुषाः प्राणि - हिंसका ॥ 
(प्राणियों की हिंसा करने वाले अन्धे, काणे, कूबड़े, दरिद्र और विकलांग पैदा होते हैं ।)
.
*दादू मांस अहारी जे नरा, ते नर सिंह सियाल ।*
*बक १, मंजार २, सुनहाँ ३, सही, एता प्रत्यक्ष काल ॥६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह हम सत्य कहते हैं कि जो प्राणी मांस आहार करने वाले हैं, वे इस मनुष्य शरीर में ही सिंह, श्याल, बगुला १, मार्जार २(बिलाव), कुत्ता ३ रूप हैं और ऐसा समझो कि मानो काल ही जीवों का नाश करने के लिये यह शरीर धर कर प्रकट हो रहा है ॥६॥ 
जैसे आतम आपनी, कांटा तैं कसकात । 
‘जगन’ जीव में जोइये, ना कर काहू घात ॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें