सोमवार, 8 अप्रैल 2013

= साच का अंग १३ =(७/९)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साच का अंग १३ =*
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*दादू मुई मार मानुष घणे, ते प्रत्यक्ष जम काल ।*
*महर दया नहीं सिंह दिल, कूकर काग सियाल ॥७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! मरे हुए तुल्य गरीब जीवों को,(बकरा, मुर्गे आदि) मारने वाले मनुष्य बहुत हैं, परन्तु वे नररूप में ही सिंह, श्याल(गीदड़) रूप हैं क्योंकि उनके दिल में ‘मिहिर’ कहिए रक्षा करना, दया नहीं है । जैसे ~ कुत्ते, काग, गीदड़, इनके दया नहीं है, वैसे ही वे जीव हिंसक हैं । दोनों में समानता ही है ॥७॥ 
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*मांस अहारी मद पीवै, विषय विकारी सोइ ।*
*दादू आत्मराम बिन, दया कहाँ थी होइ ॥८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो मानव मांस आहार करने वाले हैं और मदिरा(शराब) पान करते हैं, वही विषय - विकारों में लिप्त रहते हैं, उनके अन्दर दया तो लेश मात्र भी नहीं रहती है क्योंकि आत्मारूप राम की अनुभूति किये बिना उनमें दया कैसे हो सकती है ? क्योंकि वे आत्मा - विमुखी हैं, इसलिए उनका संग त्यागिये ॥८॥ 
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कुछ मुसलमानों ने ब्रह्मऋषि दादूदयाल महाराज को सांभर में कलमा पढ़ने और मांस भक्षण करने का आग्रह किया, उसके उत्तर में ब्रह्मऋषि सतगुरु देव का उपदेश ~
*लंगर लोग लोभ सौं लागैं, बोलैं सदा उन्हों की भीर ।*
*जोर जुल्म बीच बटपारे, आदि अंत उनहीं सौं सीर ॥९॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! लंगर कहिए खुशामदी करने वाले लोग, लोभ में पड़कर सदा जो संसारीजन असुर प्रकृति वाले हैं, उनकी ही पक्ष लेते हैं और उनके जोर जुल्म अत्याचार में ही शामिल होकर प्रसन्न रहते हैं । ऐसे पुरुषों से अलग रहकर जन - समुदाय की सेवा करो ॥९॥ 
(क्रमशः)

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