रविवार, 12 मई 2013

= भेष का अंग १४ =(२८/३०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= भेष का अंग १४ =*
*दादू माया कारण मूंड मुंडाया, यहु तौ योग न होई ।*
*पारब्रह्म सूं परिचय नांहीं, कपट न सीझै कोई ॥२८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिसने माया इकट्ठी करने के लिये ही भेष धारण किया है, उनको योग सफल नहीं है, क्योंकि स्वस्वरूप के बोध बिना केवल भेष धारण करने से अज्ञानीजनों की कदापि मोक्ष नहीं होगी ॥२८॥
*पीव न पावै बावरी, रचि रचि करै श्रृंगार ।* 
*दादू फिर फिर जगत सूं, करैगी व्यभिचार ॥२९॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह बावरी विषय आसक्त जीवात्मा, रच - रच कर कहिए, इच्छा अनुसार, कोई तो लाल झक कपड़े धारण करें, कोई जटा - जूट, कोई कन्ठी - माला, कोई त्रिपुंड, कोई खड़े तिलक इत्यादिक रुचि पूर्वक बाह्य श्रृंगार कहिए भेष बनाकर, संसार से प्रीति करके, इन्द्रियों के विषय - वासना रूपी सुख का ही उपभोग करती है । उसको प्रीतम प्यारे परमात्मा का साक्षात्कार होना असम्भव है । वह तो बारंबार जन्म - मरण को ही प्राप्त होवेगी ॥२९॥ 
*प्रेम प्रीति सनेह बिन, सब झूठे श्रृंगार ।* 
*दादू आतम रत नहीं, क्यों मानैं भरतार ॥३०॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिसका पति में प्रेम नहीं, पति - सेवा में प्रीति नहीं, पति के साथ स्न्हे नहीं और फिर भी वह स्त्री अनेक प्रकार से अपना हार श्रृंगार करती है, तो उसका सब श्रृंगार मिथ्या है । उसकी “आत्मा” कहिए बुद्धि, पति से तन्मय नहीं है, तो उसके श्रृंगार को पति क्यों मानेगा? इसी प्रकार परमात्मा रूपी पति से, जिसका न तो प्रेम है, न प्रीति है, न स्नेह है, उसका नकली भेष - बाना धारण करना सब मिथ्या है । उसकी आत्मा, परमात्मा रूपी पति से ओत - प्रोत नहीं है । उसके भेष - बाने का परमेश्‍वर आदर नहीं करते हैं ॥३०॥ 
(क्रमशः)

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