रविवार, 12 मई 2013

= भेष का अंग १४ =(३१/३३)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= भेष का अंग १४ =*
*दादू जग दिखलावै बावरी, षोडश करै श्रृंगार ।*
*तहँ न सँवारे आपको, जहँ भीतर भरतार ॥३१॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! बहिर्मुख विषयों में आसक्ति रखने वाली स्त्री, संसार को दिखाने के लिये, अपना सोलह श्रृंगार करती है और पति से विमुख रहती है, वह पति का पतिव्रत - धर्म रूप सुहाग नहीं प्राप्त कर सकती । इसी प्रकार भेषधारी, नाना प्रकार से नकली भेष बाना बनाकर, संसार में अपना आपा प्रगट करके दिखाते हैं, परन्तु अन्तःकरण में अपने आपको नहीं संवारते हैं, अर्थात् अपने स्वरूप को नहीं पहचानते हैं, ऐसे पुरुषों को परमात्मा का साक्षात्कार नहीं होता हैं ॥३१॥ 
*इन्द्रियार्थी भेष* 
*सुध बुध जीव धिजाइ कर, माला संकल बाहि ।* 
*दादू माया ज्ञान सौं, स्वामी बैठा खाइ ॥३२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! नकली भेषधारी इन्द्रिय - विलासी परमेश्‍वर से विमुखी लोग संसार में भोले - भाले प्राणियों को, कन्ठी - माला - तिलक या अन्य कोई साम्प्रदायिक चिन्ह देकर भुलावे में डालते हैं और स्वामी गुरु बनकर उनसे मायिक पदार्थों को लेते रहते हैं । सत्य वस्तु का ज्ञान नहीं देते हैं अर्थात् वे सत्य स्वरूप परमेश्‍वर से विमुख मिथ्या ज्ञान देकर ही द्वैतवाद में जीवों को उलझाते हैं ॥३२॥ 
*जोगी जंगम सेवड़े, बौद्ध सन्यासी शेख ।* 
*षट् दर्शन दादू राम बिन, सबै कपट के भेष ॥३३॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जोगी कनफटे, जंगम, सेवड़े, बोध सन्यासी, शेख, ये छः दर्शन राम की भक्ति के बिना सभी कपट के भेष हैं । राम की भक्ति जिनमें है, वही सभी सयाने विवेकी पुरुष हैं ॥३३॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें