सोमवार, 13 मई 2013

= भेष का अंग १४ =(३४/३६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= भेष का अंग १४ =*
*दादू शेख मुशायख औलिया, पैगम्बर सब पीर ।*
*दर्शन सौं परसन नहीं, अजहूँ वैली तीर ॥३४॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! शेख है, मुशायख है, ओलिया है, पैगम्बर है, पीर है, इनके दर्शन से कहिए नकली भेष - बाना से परमात्मा प्रसन्न नहीं होता । संसार के प्राणी इससे आकर्षित हो जाते हैं, परन्तु वे संसार - समुद्र में ही डूबते हैं, संसार से पार नहीं होने पाते ॥३४॥ 
*दादू नाना भेष बनाइ कर, आपा देख दिखाइ ।* 
*दादू दूजा दूर कर, साहिब सौं ल्यो लाइ ॥३५॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! नाना प्रकार के ऊपरी भेष की बनावट बनाकर, अपने आपे को आप देखते हैं, और सांसारिक प्राणियों को दिखाते हैं । हे भेषधारियो ! इस द्वैतभाव को दिल से दूर कर और साहिब = परमात्मा में लय वृत्ति द्वारा लीन हो जाओ ॥३५॥ 
*दादू देखा देखी लोक सब, केते आवैं जांहि ।* 
*राम सनेही ना मिलैं, जे निज देखैं मांहि ॥३६॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! ऐसे तो बहुत मिलते हैं, जो देखा - देखी भेष - बाना धारण करके कितने ही संसार चक्र में आते हैं और कितने ही जाते हैं । परन्तु इनमें राम के सच्चे प्रेमी, मुक्त - पुरुष, अपने हृदय में राम को साक्षात्कार देखने वाले, हमको नहीं मिले । इनमें उनका मिलना ही कठिन है ॥३६॥ 
(क्रमशः)

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