॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= भेष का अंग १४ =*
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*इन्द्रीयार्थी भेष*
*दादू झूठा राता झूठ सौं, साँचा राता साँच ।*
*एता अंध न जानहिं, कहँ कंचन, कहँ काँच ॥४०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! गर्भवास के कौल करार परमेश्वर से झूठे, ऐसे पुरुष झूठे संसार के मिथ्या कारोबार में ही रात - दिन रत्त रहते हैं । और सच्चे भक्तजन, परमेश्वर के कौल करार को पूरा करने वाले, सत्य स्वरूप परमात्मा के निष्काम नाम - स्मरण में ही अन्तःकरण में रत्त रहते हैं । परन्तु अविवेकी लोग यह नहीं समझते हैं कि कहाँ तो कंचन रूप सच्चे संत और कहाँ भेषधारी काँच के टुकड़े । इनकी समानता कैसे हो सकती है ॥४०॥
सन्त सकल सत लोक लौं, नहीं कल्पना कोइ ।
जन ‘जगन्नाथ’ असंत सो, परवशवर्ती होइ ॥
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*दादू सच बिन सांई ना मिलै, भावै भेष बनाइ ।*
*भावै करवत उर्ध्वमुख, भावै तीरथ जाइ ॥४१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! तन से, मन से, वचन से, सत्य का आचरण किये बिना सत्य स्वरूप परमात्मा की प्राप्ति नहीं होगी । चाहे कितने ही वेश - भूषा धारण करले अथवा काशी में जाकर काशी करवत ले ले, चाहे चार धाम और चौरासी तीर्थ कर ले, फिर भी निष्काम परमेश्वर का नाम स्मरण किये बिना परमेश्वर की प्राप्ति असम्भव है ॥४१॥
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*दादू साचा हरि का नाम है, सो ले हिरदै राखि ।*
*पाखंड प्रपंच दूर कर, सब साधों की साखि ॥४२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस मिथ्या संसार में हरि का नाम ही एक सत्य है और माया का कार्य प्रपंच तो सम्पूर्ण परिवर्तनशील है । अतः हरि के नाम को ही धारण कर । तन का पाखंड, भेष - भूषा आदि और वाणी का प्रपंच झूठ - कपट, ये सब त्यागने योग्य हैं । इसमें सभी संतों का प्रमाण हैं ॥४२॥
धिक जन्म नहिश्री विद्या, धिक् व्रंत धिक् बहुज्ञता ।
धिक् कुलं धिक् बहुदीक्षा, विमुखाये त्वधोक्षणे ॥
(क्रमशः)
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