॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= भेष का अंग १४ =*
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“एक राम छाड़ै नहीं, छाडै सकल विकार” - सूत्र से व्याख्यान स्वरूप, अब सांच के अंग के अनन्तर भेष के अंग का निरूपण करेंगे । भेष दो प्रकार के हैं, एक तो आत्मार्थी और दूसरा इन्द्रियार्थी । उसमें इन्द्रियार्थी का निषेध और आत्मार्थी भेष के प्रतिपादन में प्रस्तुत अंग का तात्पर्य है ।
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*मंगलाचरण*
*दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।*
*वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥१॥*
टीका ~ निरंजनदेव गुरु संतों को बारम्बार वन्दना है । जिनकी कृपा से जिज्ञासुजन स्वांग, पंथ आदि के पक्षापक्ष से पार होकर सत्य साधु स्वरूप को प्राप्त होते हैं ॥१॥
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*पतिव्रत निष्काम*
*दादू बूड़े ज्ञान सब, चतुराई जल जाइ ।*
*अंजन मंजन फूंक दे, रहै राम ल्यौ लाइ ॥२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो ज्ञान का अभिमान करते हैं, वे सब संसार - समुद्र में ही डूबेंगे और माया की चतुरता, अंजन - श्रृंगार, मंजन - पवित्रता, स्वांग - भेष, आचार - विचार भी निष्फल हैं । इन सब को फेंक दे, जला दे, त्याग दे और राम - स्मरण में ही स्थिर रह । इसी से कल्याण है, अन्यथा ये सब संसार - समुद्र में डुबोवेंगे ॥२॥
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*राम बिना सब फीका लागै, करणी कथा गियान ।*
*सकल अविरथा, कोटि कर दादू जोग धियान ॥३॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अब उपरोक्त वार्ता को ही स्पष्ट करते हैं कि निष्काम राम की अनन्य भक्ति के बिना लोक - मर्यादा, अन्य देवताओं की या सकाम कर्मों की कथा, वाचक ज्ञान, नाना प्रकार के करोड़ों बहिरंग साधन व्यर्थ हैं । राम के पतिव्रत रूप भेष के बिना जोग अर्थात् हठयोग, सकाम ध्यान, ये सभी व्यर्थ हैं । इसलिए हे साधक ! इन सबको त्याग कर केवल एक राम - नाम स्मरण में ही दत्तचित्त हो जा । लोग दिखावे के साधनों से कल्याण नहीं होता है ॥३॥
(क्रमशः)
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