शनिवार, 4 मई 2013

= साँच का अंग १३ =(१६३/१६५)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
*दादू सोइ जोगी, सोइ जंगमा, सोइ सूफी सोइ शेख ।*
*सोइ सन्यासी, सेवड़ा, दादू एक अलेख ॥१६३॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! वही योगी है, जिसके मन में एक अलेख परमेश्‍वर का नाम बसता है । वही जंगम है, जो परमेश्‍वर से रत्त रहता है । वही सूफी और वही शेख श्रेष्ठ है, जिसके मन में मालिक का स्मरण बना रहता है । वही सन्यासी भेषधारी श्रेष्ठ है, जिसने सम्पूर्ण कर्म - फल का त्याग किया है । वही सेवड़े, जैनी हैं, जिन्होंने महावीर स्वामी के सिद्धान्त को अपनाया है, अर्थात् मन - वाणी से हिंसा का त्याग किया है और एक परमेश्‍वर की ही शरण ग्रहण की है ॥१६३॥ 
माला मुद्रा धर जटा, उज्ज्वल पट धर नील । 
भेष भले ‘जगन्नाथ’ जो, होइ भजन सत सील ॥ 
*सोइ काजी सोई मुल्ला, सोइ मोमिन मुसलमान ।* 
*सोइ सयाने सब भले, जे राते रहमान ॥१६४॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! वही काजी और मुल्ला श्रेष्ठ है, जिसने हिंसा का त्याग करके रहमान का नाम - स्मरण किया है । वही मोमिन है, जिसका दिल, दूसरों के दुःखों को देखकर मोम की तरह करुणायुक्त बन जाता है । वही मुसलमान है, जो ईमान का कभी त्याग नहीं करता । वही सब सयाने समझदार हैं, जो परमेश्‍वर के नाम - स्मरण में रत्त रहते हैं ॥१६४॥ 
*राम नाम को बणिजन बैठे, ताथैं मांड्या हाट ।* 
*सांई सौं सौदा करैं, दादू खोल कपाट ॥१६५॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! आत्मार्थी कहिए, आत्मा की प्राप्ति के लिए भेष धारण करने वाले संतजन ही मानो राम - नाम का बणिज करने वाले हैं । राम - नाम का उपदेश करना और सत्संग ही जिनकी हाट है । जो भी पुरुष इस सत्संग रूपी हाट पर सांई का अर्थात् परमेश्‍वर का ज्ञान - ध्यान - भक्ति - वैराग्य आदि का व्यापार करे, अर्थात् जिज्ञासुओं को उपदेश देवे और अपना अहंत्व भाव, संसार भाव सतगुरु को समर्पण करे और ब्रह्म भाव में स्थिर होवे, सतगुरु की कृपा से ऐसे उत्तम जिज्ञासु पुरुषों के कर्म - बन्धन रूप कपाट खुल जाते हैं और वे मुक्त हो जाते हैं ॥१६५॥ 
संत ढिग जो वस्तु है, सो काहू के नांहि । 
सुन्दर तिन्ह की हाट सौं, ग्राहक ले ले जांहि ॥
(क्रमशः)

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