गुरुवार, 23 मई 2013

= साधु का अंग १५ =(४८/५०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साधु का अंग १५ =*
*दादू राता राम का, अविनाशी रंग मांहि ।*
*सब जग धोबी धो मरै, तो भी खूटै नांहि ॥४८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे हरि के भक्त संतजनों को, संसारीजन ईर्ष्या और नाना प्रकार से कसौटी देकर हरि से विमुख करना चाहते हैं, परन्तु सन्तों के अन्तःकरण से हरि का रंग नहीं छूटता है और अज्ञानी संसारीजन अपने निषिद्ध कर्म करके अधोगति को जाते हैं ॥४८॥ 
*साहिब किया सो क्यों मिटै, सुन्दर शोभा रंग ।* 
*दादू धोवैं बावरे, दिन दिन होइ सुरंग ॥४९॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे भक्त और संतों को, जब परमेश्‍वर ने आप ही स्वयं अपनी शऱण में ले लिया, तो बावरे अज्ञानी संसारीजन ज्यों ज्यों निन्दा करते हैं, वैसे - वैसे ही हरि की समर्थाई का संतों को अधिक अनुभव होता है, और ज्ञान - भक्ति - वैराग्य में मग्न रहते हैं ॥४९॥ 
*साधु परमार्थी* 
*परमारथ को सब किया, आप स्वार्थ नांहि ।* 
*परमेश्‍वर परमार्थी, कै साधु कलि मांहि ॥५०॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्‍वर ने इस सृष्टि की रचना परमार्थ के लिये की है और यह आदेश दिया है कि मैं परमार्थी हूँ, वैसे ही तुम स्थावर जंगम प्राणी परोपकार करना । परमेश्‍वर को किसी से कोई स्वार्थ नहीं है, वह निःस्वार्थी है, और या उनके प्रेमी भक्त संतजन ही कलि - काल में परमार्थी हैं । परमेश्‍वर के आदेश को मानकर मेघ वृष्टि करते हैं, चन्द्रमा, सूर्य परोपकार करते हैं, जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी परोपकार करती हैं नदियां परोपकार करती हैं, वृक्ष परोपकार क रते हैं । कहाँ तक गिनावें ? प्रायः सभी रचना परोपकार के लिये ही रची है ॥५०॥ 
फकीर दुख सब को हरै, बादशाह को प्रेर । 
कही बादशाह अब कहो, नाक कटाओ फेर ॥ 
दृष्टान्त ~ एक परोपकारी फकीर थे । उनके पास एक दुखिया आया और बोला ~ “आपके पास बादशाह आता है । अगर आप उसको बोल दें कि इसको माफ कर दे, तो मेरा कष्ट मिट जाएगा ।” जब बादशाह आया । सत्संग होने के बाद, सांई बोले ~ “बादशाह ! इसके गुनाह को माफ कर दो ।” बादशाह ने माफ कर दिया । 
इस प्रकार कई लोग फकीर के पास आने लग गये । बादशाह को कहकर फकीर ने कइयों के केस खत्म करा दिये । तब बादशाह ने फकीर के पास आना ही छोड़ दिया । फिर एक भारी दुखिया आया । फकीर बोला ~ “बादशाह तो आता नहीं । हम तेरे को वहीं ले चलते हैं ।” बादशाह के पास पहुँचे । बादशाह बोला ~ “कैसे आये हो ?” 
फकीर ~ “इसका काम पूरा कर दो ।” बादशाह ने पूरा कर दिया और बोला ~ “अब किसी और को ले आये, तो मैं तुम्हारा नाक काट लूंगा ।” 
फिर फकीर के पास कोई दुखिया आ गया, रोने पीटने लगा । फकीर उसको लेकर बादशाह के पास पहुँचे । बादशाह को बोले ~ “यह चक्कू लो, पहले हमारा नाक काट लो, फिर बतलायेंगे ।” 
बादशाह हँस पड़े - “बात क्या है ?” फकीर ~ “इसको बरी कर दो ।” बादशाह ने उसको बरी कर दिया । 
बादशाह बोला ~ “महाराज ! आप नाक कटा कर भी उसको सुखी बनाते हो ।” फकीर बोले ~ “हाँ ।” “किस लिये ?” “कि आदत से लाचार हूँ ।” - ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव कहते हैं कि साधु परमार्थी होते हैं । 
(क्रमशः)

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