गुरुवार, 2 मई 2013

= साँच का अंग १३ =(१४८/१५०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साँच का अंग १३ =*
*साचे साहिब को मिले, साचे मारग जाइ ।*
*साचे सौं साचा भया, तब साचे लिये बुलाइ ॥१४८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चा साधक ज्ञान - भक्ति - वैराग्य साधन सम्पन्न होकर स्वस्वरूप का विचार करे तो, सत्य ब्रह्म में अभेद होकर ब्रह्म रूप होता है । ज्ञानी - भक्त और भगवान् दोनों एक रूप होकर रहते हैं ॥१४८॥ 
*दादू साचा साहिब सेविये, साची सेवा होइ ।* 
*साचा दर्शन पाइये, साचा सेवक सोइ ॥१४९॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! निराकार ब्रह्म की निष्काम भाव से उपासना रूपी सेवा कीजिए । तब सच्ची भक्ति होगी । इस प्रकार आराधना करने वाला भक्त ही परमात्मा का सच्चा स्वरूप है ॥१४९॥
“जं सच्चं तं भगवं” - जिनवाणी(सत्य ही भगवान् है = सत्यराम) God is truth, truth is God. - बाइबिल 
*साचे का साहिब धणी, समर्थ सिरजनहार ।*
*पाखंड की यहु पृथ्वी, प्रपंच का संसार ॥१५०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सांसारिक वाचक पंडित, शास्त्र के सत्य अर्थ को तो छिपाते हैं और आख्यान पूर्वक माया में प्रवृत्ति कराने वाले विविध अर्थ बनाकर लोक - रंजन करते रहते हैं, परन्तु ऐसे साधनों से परमेश्‍वर प्रसन्न नहीं होता । संत तो भक्ति को भी छिपा कर रखते हैं, तथापि संसारीजन मूर्ति पूजा, तीर्थ, व्रत, सकाम कर्मों को प्रकट कहिए, लोक दिखावे में करते हैं ॥१५०॥ 
(क्रमशः)

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