बुधवार, 5 जून 2013

= साधु का अंग १५ =(११५/११६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साधु का अंग १५ =*
*दादू राम मिलन के कारणे, जे तूँ खरा उदास ।*
*साधु संगति शोध ले, राम उन्हीं के पास ॥११५॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! राम से मिलने की इच्छा है तो, तुम ब्रह्मवेत्ता संतों की संगति ढूंढ लो और फिर उनके सत्संग में एकाग्र रहो, वहाँ ही राम है । अर्थात् ऐसे संतों के पास राम प्रगट है ॥११५॥ 
उत्तम जन सौं मिलत ही, औगुण सौं गुण होय । 
घन संगि खारो उदधि को, बरसै मीठो तोय ॥ 
*पुरुष प्रकाशिक संत महिमा* 
*ब्रह्मा शंकर सेष मुनि, नारद ध्रुव शुकदेव ।* 
*सकल साधु दादू सही, जे लागे हरि सेव ॥११६॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! ब्रह्मा जी, शंकर जी, शेष जी, वशिष्ठ मुनि, देवर्षि नारद जी, ध्रुव जी, शुकदेव जी, ये जो - जो भगवान् की भक्ति में लगे हैं । यह कहते हैं कि हम सब ही साधुओं के सत्संग से इस पद को प्राप्त हुए हैं, जिनकी महिमा सर्वत्र कहिए पुराणों में, धर्म शास्त्रों में, लोक - लोकान्तरों में, आज भी विख्यात हैं । ऐसे पुरुषों के वचनों का विचार करके, सतसंगति करिये ॥११६॥ 
(क्रमशः)

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