गुरुवार, 6 जून 2013

= साधु का अंग १५ =(११९/१२०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साधु का अंग १५ =*
*दादू मम सिर मोटे भाग, साधों का दर्शन किया ।*
*कहा करै जम काल, राम रसायन भर पिया ॥११९॥* 
टीका ~ ब्रह्मऋषि दादूदयाल जी महाराज कहते हैं कि आज हमारा भारी पुण्य उदय हुआ है कि सच्चिदानन्द ब्रह्म मूर्ति रूप में प्रगट होकर हमें संत रूप से दर्शन दे रहे हैं । अब कालरूप यमराज हमारा क्या बिगाड़ सकता है ? हमने राम की भक्ति रूप अमृत रस को पूर्णतया हृदय में भरकर, स्मरण द्वारा साक्षात्कार रूप से पान कर रहे हैं ॥११९॥ 
आप नरैना गुहा में, संतन दियो दीदार । 
तब या साखी पद कह्यौ, रामकली मधि सार ॥ 
प्रसंग ~ ब्रह्मऋषि दादूदयाल जी महाराज नरैना गुफा में ईश्‍वर आराधना करते थे । एक रोज मध्य रात्रि में गुप्त - प्रकट ऋषि, मुनि, संत आदिक महाराज से ज्ञान - गोष्ठी करने के लिए आये । उस समय परम गुरुदेव ब्रह्मऋषि ने यह उपरोक्त साखी और राग रामकली के शब्द ~ 
“आज हमारे राम जी, साधु घर आये ॥टेक॥ 
मंगलाचार चहुँ दिसि भये, आनन्द बधाये ।” 
का गायन करके संतों का अभिनन्दन किया और फिर रात भर ज्ञान - गोष्ठी होती रही । प्रातःकाल शिष्यों ने पूछा कि गुरुदेव रात्रि को कौन पधारे थे ? ब्रह्मऋषि ने उपरोक्त साखी से शिष्यों को उत्तर दिया । 
*साधु समर्थता* 
*दादू एता अविगत आप थैं, साधों का अधिकार ।* 
*चौरासी लख जीव का, तन मन फेरि सँवार ॥१२०॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे परोपकारी संतभक्त जीव के तन - मन को परमात्मा के सन्मुख करके चौरासी के दुःखों से बचाते हैं । संत ऐसे दयालु हैं कि भगवान् की स्वयं प्रेरणा से ही संत परोपकार रूप कार्य करते रहते हैं अर्थात् सांसारिक जीवों को मानव - व्यवहार और परमार्थ का मार्ग दर्शाते हैं ॥१२०॥
(क्रमशः)

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