गुरुवार, 6 जून 2013

= साधु का अंग १५ =(१२१/१२२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साधु का अंग १५ =*
*विष का अमृत कर लिया, पावक का पाणी ।*
*बाँका सूधा करि लिया, सो साध बिनाणी ॥१२१॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे मुक्त - पुरुष संत, जिन्होंने विषयों से हटाकर अन्तःकरण को निर्मल आत्म - स्वरूप बना लिया है और माया, मोह, क्रोध, अग्नि से उदास होकर शान्ति सहित भक्ति में लीन रहते हैं । परमेश्‍वर से विमुख मन को भगवान् के सन्मुख करने वाले साधु परम विवेकी हैं और वे जिज्ञासुजनों को भी स्वस्वरूप प्राप्ति कराने में समर्थ हैं ॥१२१॥ 
*दादू ऊरा पूरा कर लिया, खारा मीठा होइ ।* 
*फूटा सारा कर लिया, साधु विवेकी सोइ ॥१२२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो नाम - स्मरण के बिना ऊरे(खाली) थे, उनको सच्चे मुक्त - पुरुष संतों ने अपनी समर्थता से उपदेशों द्वारा नाम - स्मरण कराके पूरे बना दिये । जो संसार - भावना में खारे थे अर्थात् विषयासक्त थे, उनको सत्संग द्वारा मीठे, सुखरूप बना लिये । संसार की ओर जिनके मन इन्द्रिय दौड़ते थे, उनको उपदेशों द्वारा ‘सारा’ कहिए, एकाग्र कर लिया । ऐसी विवेकी संतों की ही शक्ति है, अन्य की नहीं ॥१२२॥ 
(क्रमशः)

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