शनिवार, 23 नवंबर 2013

= ष. त./१३-१४ =

#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षष्ठम - तरंग” १३/१४)* 
**संतों ने माला तिलक के लिये आग्रह किया** 
संत कहें - चलहू हम साथ हिं, 
मालहिं लेकर संत कहाई । 
टीक बनाय गले कंठि बांध हु, 
यों निज सम्परदाय मिलाई । 
एक स्वरूप सबै मिलि मानहु, 
द्वैत हि भाव रहे नहिं काई । 
निर्गुण पाट कबीर हिं चादर, 
महंत कहा तुम देत उढाई ॥१३॥ 
अन्य आगन्तुक साधुओं ने छीतर से कहा - तुम यहाँ क्यों ठहर रहे हो ? हमारे साथ चलो । अपने गुरु की माला धारण करके संत बने थे, टीका - तिलक लगाकर कंठी पहनी थी, अत - अपने ही सम्प्रदाय में मिलकर रहो । और संत दादूजी ! आपसे भी हम यही कह रहे है कि - आप भी हमारे साथ चलो, हमारे सम्प्रदाय में मिलकर कंठी तिलक को धारण कर लो । आप और हम एक स्वरूप होकर मिल कर रहे । आप और हमारे सम्प्रदाय में कोई द्वैत भाव तो है नही । आप भी निर्गुण उपासक हैं । श्री दादूजी ने कहा सत्गुरू मन रूपी माला दी है जो बिना हाथ के चलती है । राम नाम की माला कंठ में बांधी है जो वृति रूप में ब्रह्ममें स्थिर है ज्ञान का तिलक शिर पर सुहाता है । प्रभु भक्ति ही एक जाप है निरन्तर ब्रह्म की उपासना करते हैं वही अजप्पा जाप है । और हम भी निर्गुण - उपासक कबीर जी के पंथानुयायी हैं । महन्त जी ने कहलवाया है कि - आप हमारे सम्प्रदाय में मिल जावेंगे तो कबीर जी की पाट - गादी अपने बाद आपको दे देंगे ॥१३॥ 
**श्री रामानन्द जी के बारे में बताया** 
दादु कहें - किन भेष चलावत, 
टीकहिं माल कँठी किन धारा । 
संत कहें - गुरु थापि रामानन्द, 
यों निज पंथहिं लक्षण धारा । 
आप कहीं - हम जानत ताहिं जु, 
संत भये कुल मांहि लखारा । 
भेष बनाय कहावत साधु जुं, 
स्वांग प्रबोधित किये अनुसारा ॥१४॥ 
श्री दादूजी ने पूछा - तुम्हारा यह भेष किसने चलाया ? टीका - तिलक माला और कंठी का धारण - प्रचलन किसने बताया ? तब साधुओं ने कहा - यह सब रामानन्द जी का स्थापित किया हुआ है, उन्होंने ही इस पंथ के भेष लक्षण बनाये हैं तब दादूजी बोले हम उन्हें जानते हैं, वे संत लखारा कुल में उत्पन्न हुये थे । फिर भेष बनाकर संत कहलाने लगे, और अपनी बुद्धि अनुसार इस स्वांग का प्रबोध अपने अनुयायियों को दिया ॥१४॥ 
(क्रमशः)

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