शनिवार, 23 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(५१/५२)


॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*दादू तन तैं कहॉं डराइये, जे विनश जाइ पल बार ।*
*कायर हुआ न छूटिये, रे मन हो हुसियार ॥५१॥*
टीका ~ हे मन ! इस शरीर के मरने से क्या डरता है ? यह तो एक - एक पल में जा रहा है और जाने वाला है । अर्थात् कायर होकर, विषयों की चाहना में और संसार के मायावी पदार्थों की हाय - हाय में लग कर, अपना लक्ष्य, जो अधिष्ठान चैतन्य परमेश्‍वर है, उसके स्मरण से अलग नहीं होना ॥५१॥
कोणैं पड़या न छूटिये, सुण रे जीव अबूझ । 
कबीर मर मैदान में, अरि इन्द्रयां सूं झूझ ॥
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*दादू मरणा खूब है, मर माहीं मिल जाइ ।*
*साहिब का संग छाड़ कर, कौन सहै दुख आइ ॥५२॥*
टीका ~ हे मन ! जीवितकाल में ही निर्वासनिक रूप मरना, जीवित मृतक मरना कहा जाता है । यह मरना बहुत अच्छा है । यह मरना तो परमेश्‍वर रूप कर देता है । परमेश्‍वर का संग छोड़कर, फिर दुनियां में आकर, जन्म - मरण का दुःख कौन सहे ॥५२॥
(क्रमशः)

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