*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचम - तरंग” २०/२२)*
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*पानी में रास्ता*
साँझ भई चलिये पुर भीतर,
संत कृपा करि नीर फटाये ।
दोय विभाग किये जल के तब,
बीच भयो मग दौरत जाये ।
बेग हि आय सरोवर बाहर,
एक भयो जल ताल समाये ।
होत अचम्भ सबै पुर सांभर,
धन्य जु दादु दयालु सहाये ॥२०॥
वहाँ खड़े - खडे़ सायंकाल हो गया । तब स्वामीजी ने कृपा करके योगशक्ति से जल - भराव को बीच में से फाड़ दिया, उसके दो विभाग कर दिये । पानी के बीच में उभरी हुई जमीन दिखने लगी । सभी उस मार्ग से भक्त नगर किनारे पहुँच गये । भक्तजन ज्यों ही झील के किनारे पहुंचे, वह मार्ग विलुप्त हो गया, सर्वत्र एक समान जल हो गया । यह चमत्कार देखकर सभी को आश्चर्य हुआ । साँभर में श्री दादूजी की जयकार होने लगी । उन्होंने भक्तों को पार उतारने में सहायता की ॥२०॥
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*पानी ज्यादा आ गया सरोवर में*
दादुदयालु हिं शिष्य भये बहु,
संवत् सोलह सौ तब तीसा ।
एक समय वर्षा ॠतु श्रावण,
सागर ध्यान धरें जगदीशा ।
वर्षत मेघ नदी बहु आवत,
नीर भर्यो चहुं ओर पुरी सा ।
आवत नीर कहें सब सन्तन,
बेगि चलो पुर मांहि मुनीशा ॥२१॥
सम्वत् १६३० तक स्वामीजी के बहुत से शिष्य हो गये थे । एक समय वर्षा ॠतु के श्रावणमास में स्वामीजी झील मध्य अपने आसन पर ध्यान कर रहे थे । तभी घनघोर वर्षा प्रारम्भ हो गई, नदियाँ बहने लगी । नगरी के चारों ओर जल ही जल भर गया । शिष्य संतों ने स्वामीजी से निवेदन किया - गुरुजी ! शीध्र ही नगरी में पधारिये । वर्षा का पानी - भराव बढता जा रहा है ॥२१॥
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*संत समाज जल पर चले*
संत समाज चले जल ऊपर,
भूमि चले जिम पांव धरे हैं ।
दादु दयालु जपैं सब साधु रू,
स्वामिजु राम उच्चार करे हैं ।
टीला सुनि मन शंक उपावत,
दादु तजे, मुख राम धरे हैं ।
डूबन लाग रह्यो जल भीतर,
संत कहें - जल माहिं गिर हैं ॥२२॥
स्वामीजी ने कहा - आओ, अपने गुरुमंत्र(दादूराम) का जाप करते हुये इस जल - भराव को पार करो । गुरुमंत्र के प्रभाव से सभी संत जल के ऊपर इस तरह चलने लगे, जैसे भूमि पर चलते हैं । सभी संत ‘दादूराम - दादूराम’ मंत्र का जाप करते हुये चल रहे थे । स्वामीजी ‘राम - मंत्र’ का जाप कर रहे थे । समीप ही चलते हुये शिष्य टीला जी ने जब गुरुजी को ‘राम - राम’ जपते हुये सुना तो मन में शंका उत्पन्न हुई, और सोचा कि - जब गुरुजी राम - राम जप रहे हैं तो मुझे भी ‘राम - राम’ ही जपना चाहिये । दादूराम - मंत्र का जाप छोड़कर वे ‘राम - राम’ जपने लगे । तभी वे जल में डूबने लगे । साथ चल रहे संतों ने कहा - अरे टीलाजी डूब रहे हैं ॥२२॥
(क्रमशः)
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