शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

= प. त./२०-२ =

#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचम - तरंग” २०/२२)* 
*पानी में रास्ता* 
साँझ भई चलिये पुर भीतर, 
संत कृपा करि नीर फटाये । 
दोय विभाग किये जल के तब, 
बीच भयो मग दौरत जाये । 
बेग हि आय सरोवर बाहर, 
एक भयो जल ताल समाये । 
होत अचम्भ सबै पुर सांभर, 
धन्य जु दादु दयालु सहाये ॥२०॥ 
वहाँ खड़े - खडे़ सायंकाल हो गया । तब स्वामीजी ने कृपा करके योगशक्ति से जल - भराव को बीच में से फाड़ दिया, उसके दो विभाग कर दिये । पानी के बीच में उभरी हुई जमीन दिखने लगी । सभी उस मार्ग से भक्त नगर किनारे पहुँच गये । भक्तजन ज्यों ही झील के किनारे पहुंचे, वह मार्ग विलुप्त हो गया, सर्वत्र एक समान जल हो गया । यह चमत्कार देखकर सभी को आश्चर्य हुआ । साँभर में श्री दादूजी की जयकार होने लगी । उन्होंने भक्तों को पार उतारने में सहायता की ॥२०॥ 
*पानी ज्यादा आ गया सरोवर में* 
दादुदयालु हिं शिष्य भये बहु, 
संवत् सोलह सौ तब तीसा । 
एक समय वर्षा ॠतु श्रावण, 
सागर ध्यान धरें जगदीशा । 
वर्षत मेघ नदी बहु आवत, 
नीर भर्यो चहुं ओर पुरी सा । 
आवत नीर कहें सब सन्तन, 
बेगि चलो पुर मांहि मुनीशा ॥२१॥ 
सम्वत् १६३० तक स्वामीजी के बहुत से शिष्य हो गये थे । एक समय वर्षा ॠतु के श्रावणमास में स्वामीजी झील मध्य अपने आसन पर ध्यान कर रहे थे । तभी घनघोर वर्षा प्रारम्भ हो गई, नदियाँ बहने लगी । नगरी के चारों ओर जल ही जल भर गया । शिष्य संतों ने स्वामीजी से निवेदन किया - गुरुजी ! शीध्र ही नगरी में पधारिये । वर्षा का पानी - भराव बढता जा रहा है ॥२१॥ 
*संत समाज जल पर चले* 
संत समाज चले जल ऊपर, 
भूमि चले जिम पांव धरे हैं । 
दादु दयालु जपैं सब साधु रू, 
स्वामिजु राम उच्चार करे हैं । 
टीला सुनि मन शंक उपावत, 
दादु तजे, मुख राम धरे हैं । 
डूबन लाग रह्यो जल भीतर, 
संत कहें - जल माहिं गिर हैं ॥२२॥ 
स्वामीजी ने कहा - आओ, अपने गुरुमंत्र(दादूराम) का जाप करते हुये इस जल - भराव को पार करो । गुरुमंत्र के प्रभाव से सभी संत जल के ऊपर इस तरह चलने लगे, जैसे भूमि पर चलते हैं । सभी संत ‘दादूराम - दादूराम’ मंत्र का जाप करते हुये चल रहे थे । स्वामीजी ‘राम - मंत्र’ का जाप कर रहे थे । समीप ही चलते हुये शिष्य टीला जी ने जब गुरुजी को ‘राम - राम’ जपते हुये सुना तो मन में शंका उत्पन्न हुई, और सोचा कि - जब गुरुजी राम - राम जप रहे हैं तो मुझे भी ‘राम - राम’ ही जपना चाहिये । दादूराम - मंत्र का जाप छोड़कर वे ‘राम - राम’ जपने लगे । तभी वे जल में डूबने लगे । साथ चल रहे संतों ने कहा - अरे टीलाजी डूब रहे हैं ॥२२॥ 
(क्रमशः)

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