शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(२१/२२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*शूरा झूझै खेत में, सांई सन्मुख आइ ।*
*शूरे को सांई मिले, तब दादू काल न खाइ ॥२१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे शूरवीर संतजन, परमेश्‍वर के सन्मुख होकर भक्ति मार्ग में या अन्तःकरण रूपी खेत में गुण - विकारों से युद्ध करते हैं, अर्थात् उनको मारते हैं और फिर ब्रह्म में अभेद होकर मायावी काल - कर्म से मुक्त हो जाते हैं ॥२१॥
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*मरबे ऊपरि एक पग, कर्ता करै सो होहि ।*
*दादू साहिब कारणै, तालाबेली मोहि ॥२२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जीवित मृतक अवस्था को प्राप्त करने के लिये दृढ़ निश्‍चय और विरह सहित पुकार करें । कर्त्ता परमेश्‍वर जो कुछ करेगा, सो होगा । विरहीजनों के तो परमात्मा की प्राप्ति के लिये, एक ताला - तलफ और बेली = विलाप ही अन्तःकरण में रहता है ॥२२॥ 
(क्रमशः)

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