रविवार, 10 नवंबर 2013

= ६३ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
प्रेम भक्ति दिन दिन बधै, सोई ज्ञान विचार । 
दादू आतम शोध कर, मथ कर काढ़या सार ॥ 
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विचार और भाव.... 
विचार पदार्थ से भी अधिक वेगवान और शक्तिशाली होता है। विचार जब ठोस पदार्थ को प्रभावित कर सकता है तो इसका अर्थ है कि उसमें अधिक 
शक्ति है। शरीर पदार्थ है और वो विचार से नियंत्रित होता है। शरीर को विचार कहता है बैठो, उठो, सो जाओ, दौड़ो, इस पर प्रहार करो तो शरीर वैसा ही करने लगता है। 
वस्तुतः विचार निर्णयात्मक वृति और जीवन का नियंत्रक भी है। विचार सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रकार का होता है क्योंकि विचार का अविर्भाव मन में होता है, इसलिए मन को गिरना होता है क्योंकि मन जब तक खड़ा रहेगा, विचार आता रहेगा। मन को गिराने का एक ही तरीका है ध्यान। विचार एक ऊर्जा है इसलिए हम विचारों से बहुत दिन तक प्रभावित रहते हैं। 
राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि आज भी वैचारिक ऊर्जा देते हैं जबकि ये केवल विचार नहीं भाव का खेल है। मनुष्य के मरने पर भी उसका विचार तैरता रहता है, ठीक वैसे ही जैसे अंधेरी कोठरी में टॉर्च जलाने पर अनेकों कण तैरते दिखाई देते हैं। 
चिंतन एक अलग चीज़ है जिसका अर्थ है विवेक में जीना, हमेशा जागरूक रहना, और ऐसा इंसान ही चिंतन में प्रवेश कर सकता है क्योंकि वह चेतना में जीता है। जो चैतन्य से जुड़ जाता है उसमे भाव का जन्म होता है और भाव से ही मनुष्य परमात्मा से जुड़ता है। और भाव है विचारशून्यता की स्थिति। जब हमारे विचार कमतर अवस्था में होते है, तब हम अधिकतर भाव में होते है। 
विचार का जन्म मस्तिस्क में होता है जबकि भाव का संबंध हृदय से है।अधिकतर हम लोग केवल मस्तिस्क या बुद्धि से चलते है, इसलिए दुखी रहते हैं लेकिन जो लोग हृदय(भाव) में जीते हैं वो किसी भी अवस्था में आनंद और केवल आनंद का ही अनुभव करते हैं। 
अतीत के महापुरुष जिनको हम केवल किताबों, शास्त्रों के माध्यम से जानते हैं, वो विचार से उठकर भाव में स्थित हो गए थे, इसी भाव का जन्म होने पर हम केंद्र(आत्मा) की ओर बढ़ते हैं वरना जन्मों जन्मों तक हम परिधि(शरीर) पर ही विचरण करते रहते हैं अर्थात जन्म, फिर जन्म, फिर जन्म, ......... और जन्म ... केवल जन्म ....................

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