गुरुवार, 14 नवंबर 2013

श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता(पं.दि.- १९/२०)


卐 दादूराम~सत्यराम 卐
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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
पंचम दिन ~ 
वैरिण एक घुसे घर मांही, 
तुझसे रति मुझको चह नांहीं ।
है यह नणद समझ गइ आली, 
नहीं, वृत्ति विषयों दिशि चाली ॥१९॥
आं. वृ. - “एक ऐसी वैरिणी घर में आ घुसती है । वह तुझसे तो प्रेम करती है किन्तु मुझको नहीं चाहती । बता वह कौन है ?”
वां. वृ. - “तेरी नणद होगी ?”
आं. वृ. - “नहिं, सखि ! यह विषयाकार वृत्ति है । वह तुझ वाह्यवृत्ति को तो चाहती है । क्योंकि तू बाहिर जाती है, तब ही उसे विषयाकार होने का अवकाश मिलता है और मुझ आंतर के पास रहने से वह कमजोर हो जाती है । इस कारण मुझसे वह शत्रुता करती है । किन्तु तू भी सावधान रहना । उसके फंदे में रहेगी तब तक तुझे भी शांति नहीं मिल सकेगी । जहाँ तक हो सके तुझे विषयाकार वृत्ति का संग छोड़ ही देना चाहिये । यदि नहीं छोड़ेगी तो अन्त में तुझे पश्‍चाताप ही करना पड़ेगा ।”
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इक घर में बसती ईर्ष्यालु, 
भली कहत शिर डाले बालू ।
समझ गई मैं यह दोरानी, 
विषय वासना जान सयानी ॥२०॥
आं. वृ. - “एक ऐसी ईर्ष्यालु घर में बसती है । यदि उसे भली शिक्षा दे तो उल्टी शिक्षा देनेवाले के शिर पर रेता डालती है । बता वह कौन है ?” 
वां. वृ. - “तुम्हारी दोरानी होगी !” 
आं. वृ. - “नहिं, सखि ! यह तो विषयों की वासना है । इसे यदि कहें कि तू अपनी चंचलता को थोड़ी कम कर, तो उल्टी उलाहना देती है कि -“तू क्यों नहीं अपनी आदत छोड़ती । भीतर ही बैठी रहती है । तेरे समान ही सब हो जाय तो फिर इन संसार के भोगों का उपयोग ही क्या होगा ?' इत्यादिक उलाहना रूप धूल मुझ शिक्षा देने वाली पर ही डालती है । सखि ! यदि तू इसके अधीन हो गई तो जीवन ही नष्ट हो जायेगा । यह तुझ में उलटे विचार भर देगी । संतों ने तो अपना जीवन संयम से ही व्यतीत किया है और ऐसी ही शिक्षा भी दे गये हैं । क्योंकि जितनी विषय वासना बढ़ेगी, उतना तूं ही उसकी पूर्ति के लिये झूठ कपट आदि के द्वारा पाप कर्म करना होगा । उन पाप कर्मों से हम भगवान् से दूर ही होते जायेंगे । मनुष्य से पक्षी, कीट, पतंग तक होकर पत्थर तक बनना पड़ेगा । अत: विषय वासना के पीछे न पड़ कर विहित कर्मों द्वारा मर्यादा से ही जीवन चलाना चाहिये ।” 
(क्रमशः) 

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