गुरुवार, 14 नवंबर 2013

दादू निरंतर पिव पाइया ४/२


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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*परिचय का अंग ४/२*
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*दादू निरंतर पिव पाइया, तहें पंखी उनमनि जाइ ।*
*सप्तों मंडल भेदिया, अष्टै रह्या समाइ ॥२॥*
दृष्टांत - बाग सप्त गह महल के, लखत रहे सब कोय ।
बिन देख अष्टम गया, भूप बना फिर सोय ॥ नारायण ॥
एक राजा एक दिन दर्पण में मुख देख रहा था । उसी समय उसे अपने कान के पास श्वेत बाल दिखाई दिये । तब राजा ने सोचा - यह मृत्यु का बुलावा आ गया है । अब मरणा तो होगा ही किन्तु मेरे औरस पुत्र नहीं होने से पीछे राज गद्दी पर कोई अयोग्य व्यक्ति बैठ जायगा तो राज्य कोश को भी नष्ट कर देगा और प्रजा को भी दुःख देगा । अतः पहले ही परीक्षा करके राजगद्दी उसे दे दूं और मैं ईश्वर भजन में लग जाऊं । 
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परीक्षा के लिये राजा ने अपने विशाल बाग को नाना कलाओं से सज्जित किया और बाग के बीच में सात खंड का एक महल बनवाकर अष्टम खंड पर एक कमरा ही बनवाया । सातों खंडों में देखने योग्य नाना मूर्ति आदि अनेक वस्तुयें रक्खी गई । जिनके देखने से नेत्र तृप्त ही नहीं हों । अष्टम खंड का कमरा खाली रक्खा गया । फिर राजा ने अपने देश में घोषणा करा दी कि अमुक दिन, दिन के आठ बजे बाग में प्रवेश करके बाग के कला कौशलादि तथा महल को देखने योग्य वस्तुयें देख कर ठीक १२ बजे अष्टम खंड के कमरे में राजा के पास पहुँच जायगा उसे राजा अपना राज्य दे देंगे । यह राजा की ही घोषणा हैं । 
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जो जो राज्य चाहते थे वे सब ठीक ८ बजे बाग में प्रविष्ट होकर १२ बजे राजा के पास पहुँचना चाहते थे । किन्तु बाग का कला कौशल और महल की वस्तुयें देखने में उनका समय पूरा हो गया । सप्तम खंड में भी कोई नहीं पहुंच सका ।
एक व्यक्ति ने सोचा - मेरे घर से निकल कर महल के अष्टम खंड में जाने में इतना समय लगेगा । वह ठीक समय पर घर से चला और ठीक १२ बजे राजा के पास जाकर राजा को प्रणाम करे बैठा और बोला - आपकी प्रतिज्ञा के अनुसार मैं ठीक १२ बजे आपके पास आ गया हूं । अब आप अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करिये । 
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राजा ने पू़छा - तुमने बाग का कला कौशल और महल के सातों खंड देखे ? उसने कहा - उनका क्या देखना था । जह आप राज्य मुझे दे देंगे तब वे तो सब मेरे ही हो जायेंगे । फिर देखता रहूंगा । राज समझ गये यह बुद्धिमान है, राज्य को ठीक ही चलायेगा । फिर राजा ने उसे राजगद्दी दे दी और स्वयं ईश्वर उपासना में लग गये । 
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उक्त प्रकार ही सांसारिक विषय रूप बाग और माया मंडल रूप सप्त खंड प्राप्त करता है । वैसे आत्मा आकाशवत सर्वगत और नित्य होने से प्राप्त ही है किन्तु माया मंडलों की आड से भासता नहीं है, माया मंडलों को उक्त दो नम्बर की साखी की दादू गिरार्थ प्रकाशिका टीका में देखें । यहाँ अर्थ नहीं दिया जाता ।

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