रविवार, 3 नवंबर 2013

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू जेते गुण व्यापैं जीव को, ते ते ही अवतार ।*
*आवागमन यहु दूर कर, समर्थ सिरजनहार ॥* 
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Bhakti ~ {साभार:- Vijay Divya Jyoti} 

अविद्या :: पुनर्जन्म का कारण ~ 
IGNORANCE : ROOT OF REBIRTH 
बहुत अद्भुत है यह संसार और मानव जीवन। कितना आश्चर्यजनक है कि मनुष्य जीवन जीता है, पर जीवन को जानता नहीं है। जीना एक बात है और उसे जानना दूसरी बात। जीवन को न जानने के कारण ही हम उस सूक्ष्म शरीर को, जो हमें निरंतर सक्रिय बनाए हुए है, नहीं जानते। जहां से हमें प्रकाश, गति और सक्रियता मिल रही है, श्वास का स्पंदन, हृदय की धड़कन जिसके माध्यम से हो रही है और मस्तिष्क की हर कोशिका जिसके कारण सक्रिय बनी हुई है, उसको हम नहीं जानते। 
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पर मनोविज्ञान के क्षेत्र में यह तथ्य स्पष्ट हो चुका है कि स्थूल शरीर बहुत कम शक्ति वाला है। मूल शक्ति का संचालन करने वाला है 'सूक्ष्म शरीर'। इसे 'तेजस शरीर' भी कहा गया है और इसे 'औरा' भी कहते हैं। 'औरा' वैदिक सिद्धांत का अद्वितीय विज्ञान है और इसका आध्यात्मिकता से सीधा संबंध है। यह शरीर के चारों ओर प्रकाशमय ऐसा अदृश्य आभावृत्त है जो व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व को परिभाषित करता है। 
यह सूक्ष्म शरीर ही पुनर्जन्म का कारण है, क्योंकि सूक्ष्म शरीर मन प्रधान है, उसकी वासना नहीं मरती है। मनुष्य जन्म लेता है, मरता है फिर जन्म लेता है। इस प्रकार जन्म-मरण का यह चक्र चलता रहता है, क्योंकि न अविद्या मरती है और न ही मन अर्थात इन्द्रियजनित वासनाएं मरती है। इसी कारण वह हर जन्म में 'आशा-तृष्णा' में फंसा रहता है। वस्तुत: 'अविद्या' ही हमारे दु:ख का एकमात्र कारण है। 
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आत्मा तो आनंदस्वरूप है। वह परमात्मा का अंश है, अत: प्रत्येक जीव ब्रह्म है। वाह्य एवं अंत: प्रकृति को वशीभूत करके अपने इस ब्रह्मभाव तक पहुँचना ही जीव का चरम लक्ष्य है, जिसे वह अविद्या के कारण विस्मृत किए हुए हैं। अविद्या के बंधन से छूटकर ही हम जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा सकते हैं।

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