रविवार, 3 नवंबर 2013

= ४९ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*आत्मराम विचार कर, घट घट देव दयाल ।* 
*दादू सब संतोंषिये, सब जीवों प्रतिपाल ॥* 
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साभार : True Indian ~ 
एक बार रसायन शास्त्री आचार्य नागार्जुन को एक महत्वपूर्ण रसायन तैयार करने के लिए एक सहायक की आवश्यकता थी। उन्होंने अपने परिचितों और कुछ पुराने शिष्यों को इसके बारे में बताया। उन्होंने कई युवकों को उनके पास भेजा। आचार्य ने सबकी थोड़ी-बहुत परीक्षा लेने के बाद उनमें से दो युवकों को इस कार्य के लिए चुना। दोनों को एक-एक रसायन बनाकर लाने का आदेश दिया। 
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पहला युवक दो दिनों के बाद ही रसायन तैयार कर लाया। नागार्जुन अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने युवक से पूछा- तुमने बहुत जल्दी रसायन तैयार कर लिया। कुछ परेशानी तो नहीं आई? युवक बोला- आचार्य ! परेशानी तो आई। मेरे माता-पिता बीमार थे। पर मैंने आपके आदेश को महत्व देते हुए मन को एकाग्र किया और रसायन तैयार कर लिया। आचार्य ने इसका कोई जवाब नहीं दिया।
कुछ ही देर बाद दूसरा युवक बिना रसायन लिए खाली हाथ लौटा। वह आते ही बोला- आचार्य क्षमा करें। मैं रसायन नहीं बना पाया। क्योंकि जैसे ही मैं यहां से गया तो रास्ते में एक बूढ़ा आदमी मिल गया जो पेट-पीड़ा से कराह रहा था। मुझसे उसकी पीड़ा देखी नहीं गई। मैं उसे अपने घर ले गया और उसका इलाज करने लगा। अब वे पूरी तरह स्वस्थ हैं। अब आप आज्ञा दें तो मैं रसायन तैयार करके शीघ्र ही ले आऊं। नागार्जुन ने मुस्कुराते हुऐ कहा- वत्स। तुम्हें अब रसायन बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। कल से तुम मेरे साथ रहकर काम कर सकते हो।
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फिर वह पहले युवक से बोले- बेटा ! अभी तुम्हें अपने अंदर सुधार करने की आवश्यकता है। तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया, इससे मुझे प्रसन्नता हुई। यह अच्छी बात तो है पर यह मत भूलो कि सच्चा चिकित्सक वह है जिसके भीतर मानवीयता भरी हो। उसके भीतर यह विवेक होना आवश्यक है कि वह पहले क्या करे। अगर किसी को तत्काल सेवा और उपचार चाहिए तो चिकित्सक को दूसरे सभी आवश्यक कार्य छोड़कर उसकी सेवा में लग जाना चाहिए।

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