शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

दादू नूरी दिल अरवाह का.४/२१९


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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*परिचय का अंग ४/२१९*
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दादू नूरी दिल अरवाह का, तहाँ बसे माबूदं ।
तहँ बन्दे की बन्दगी, जहां रहे मौजूदं ॥२१९॥
दृष्टांत - वालमीक वन में हते, मानुष किते हजार ।
उलट नाम दिया सप्त ॠषि, जपत नूर भव पार ॥१७॥
वाल्मीकि का प्रथम नाम रत्नाकर था । ये भीलों के साथ रहने से भील और लुटेरे बन गये थे । एक दिन सप्तॠषियों को लूटने लगे तब उन्होंने कह - यह घोर पाप तुमको ही भोगना पड़ेगा । रत्नाकर - मैं सब कुटुम्ब के लिए करता हूँ अतः सब कुटुम्ब ही भोगेगा । सप्तॠषि - तुम घर पर जाकर पू़छो वे भोगेंगे क्या ? रत्नाकर - तुम भाग जाओगे । सप्तॠषि नहीं भागेंगे । 
रत्नाकर पर ॠषियों का प्रभाव पड़ा अतः घर पर गया और सब से पू़छा । सबने कहा - पाप जो करता है वही भोगता है । तुम्हारा काम कुटुम्ब का पोषण करना है, तुम अच्छे काम करके धन कमाओ और उससे पोषण करो पाप क्यों करते हो ? कुटुम्ब की बात सुनकर रत्नाकर को अति दुःख हुआ । 
वह आकर सप्तॠषियों के चरणों में पड़ कर प्रणाम करने लगा तब ॠषियों ने कहा - तुम्हारा संतसमागम सफल हो गया । रत्नाकर - अब आप मेरे उद्धार का साधन बतावें । तब ॠषियों ने मरा मरा जाप बताये । वही राम राम हो गया और वहां ही समाधि लग गई और वल्मीक के नीचे दब गये । 
फिर चिरकाल से सप्त ॠषि उधर आये तो उन्हें रत्नाकर का स्मरण आ गया । और ध्यान से देखा तो ज्ञात हुआ वल्मीक के नीचे दबा है । फिर वल्मीक को हटा कर समाधि से जगाकर कहा - अब तुम वल्मीक से निकलने के कारण वाल्मीकि नाम से प्रसिद्ध ॠषि होगे वैसा ही हुआ । 
आपने ही वाल्मीकि रामायण की रचना की थी उसे में योग वशिष्ट है । वेदान्त में मुख्य दृष्टि सृष्टिवाद सिद्धान्त है सो आपका ही है । उक्त दृष्टांत - नूरीदिल अंश पर है । नूरी(शुद्ध) अन्तःकरण में ईश्वर बसते हैं रत्नाकर का भजन से अन्तकरण शुद्ध हुआ तब हृदय में हरी का साक्षात्कार हुआ था ।
(क्रमशः)

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