शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(४९/५०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
दादू मरणे थीं तूं मत डरै, मरणा आज कि काल ।
मरणा मरणा क्या करै, बेगा राम सँभाल ॥४९॥
टीका ~ हे मन ! इस स्थूल शरीर का नाश तो, आज या कल अवश्य होना है । अब तूं ‘मरना है मरना है’, यह ऐसे क्या करता है ? राम का स्मरण करने में देर मत कर ॥४९॥
कबीर आज काल कि पंच दिन, जंगल होइगा बास । 
ऊपर ऊपर फिर हिंगे, ढोर चरेंगे घास ॥
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दादू मरणा खूब है,निपट बुरा व्यभिचार ।
दादू पति को छाड़ कर, आन भजै भरतार ॥५०॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जीवित काल में ही, मुर्दावत् निर्वासनिक होना, बहुत अधिक मरना है । परन्तु परमात्मा को छोड़ करके, दूसरों से, कहिये अन्य देवी देवताओं से, प्रीति करना बुरा है । क्योकि जो स्त्री अपने पति का त्याग करके दूसरे को अपना भर्तार अपनाती है, उसका जन्म पतिव्रत धर्म के बिना निरर्थक ही जाता है ॥५०॥ 
(क्रमशः)

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