शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

= ष. त./११-१२ =


#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षष्ठम - तरंग” ११/१२)* 
**श्री दादूजी ने गलता जाने से मना किया** 
आप कही - तहँ नाँही चलें हम, 
कृष्ण हिं नन्द सुं काम है काई । 
संत कहें - अब बेगि चलो तुम, 
देखहु आचार्य जु प्रभुताई । 
धाम चिताय किये खर योगिन, 
कानन में मुद्रा झलकाई । 
कुरम भूप जु सेवक होवत, 
तां करि विनती सुखदाई ॥११॥ 
श्री दादूजी ने कहा - भाई ! हम वहाँक्यों चले ? हमें तो महन्त कृष्णा नन्द जी से कोई प्रयोजन नही ॥ साधुओं ने फिर आग्रह किया - आप एक बार पधारिये, हमारे महन्त जी का चमत्कार देखिये । उन्होंने घमण्डी योगी नाथों को अपनी सिद्धि से खर बना दिया । वे खर कानों में मुद्रा लटकाये फिरने लगे । महन्तजी ने अपने धाम को बहुत प्रसिद्ध किया । उनके प्रभाव से कूर्मवंशी वहाँ का राजा भी उनका सेवक बन गया । उस राजा की विनती सुनकर महन्तजी ने उन खर बने नाथों पर दया की ॥११॥ 
**छीतर दासजी दादूजी के शिष्य बन गये** 
संत सता खर - रूप निवारत, 
योगि जु पाँव परे पनिहारे । 
काष्ठक पंच हु भार किया दत, 
लेकर शीश धुणी नित डारे । 
दादु कहें - इत नांहिन योगी जु, 
संत सुधीर चले न लगारे । 
छीतर दास जु शिष्य भये तब 
संत सदा हरि हैं रखवारे ॥१२॥ 
अपनी सत्ता से उनका खर - रुप निवारण किया । योगी नाथ महन्तजी के चरणों में गिर पड़े । अब वे आश्रम में पानी भरते हैं, काष्ठ की पाँच भारियाँनित्य धूणी पर लाकर रखते है । उन्हें यही दण्ड दिया गया है । यह सुनकर श्री दादूजी ने कहा - यहाँ उन योगीनाथों जैसा कोई नहीं है, जो उनकी सिद्धि से डरकर उनके सम्प्रदाय में मिल जाय, और उनकी दासता स्वीकार ले । यहाँ तो सब अपने इष्ट में सुधीर है । ये भला किसी के अनुयायी नहीं बनने वाले । छीतरदास जी ने कई प्रश्न किये । दादूजी महाराज ने उत्तर दिये । अयोध्या इतिहास भी सुनाया, जो भी प्रश्न श्री दादू जी से किये सभी का उत्तर मिला । श्री दादूजी का तप− - प्रभाव देखकर छीतरदास तो उसी समय उनका शिष्य बन गया, और बोला - हे महान् संत ! मेरी रक्षा करो । स्वामी ने कहा - श्री हरि ही सबके रक्षक व पालक है ॥२॥ 
(क्रमशः)

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