#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
कोई पिवै राम रस प्यासा रे ।
गगन-मंडल में अमृत सरवे, उन्मननि के घर बासा रे ॥टेक॥
सीस उतार धरै धरनी पर, करै न तन की आसा रे ।
ऐसा महिंगा अमी बिकावै, छह ऋतु बारह मास रे ॥१॥
मोल करै सो छकै दूर तें, तोलन छूटे वासा रे ।
जो पीवै, सो जग जग जीवै, कबहु न होय विनासा रे ॥२॥
याँ कारज भये नृप जोगी, छाडै भोग-विलासा रे ।
सेज सिंहासन बैठे रहते, भसम लगाय उदासा रे ॥३॥
गोरखनाथ भरथरी रसिया, सोहि कबीर अभ्यासा रे ।
गुरु-दादू परसाद कछु इक, पायौ "सुन्दरदासा" रे ॥४॥
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