शनिवार, 16 नवंबर 2013

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#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
कोई पिवै राम रस प्यासा रे । 
गगन-मंडल में अमृत सरवे, उन्मननि के घर बासा रे ॥टेक॥ 
सीस उतार धरै धरनी पर, करै न तन की आसा रे । 
ऐसा महिंगा अमी बिकावै, छह ऋतु बारह मास रे ॥१॥ 
मोल करै सो छकै दूर तें, तोलन छूटे वासा रे । 
जो पीवै, सो जग जग जीवै, कबहु न होय विनासा रे ॥२॥ 
याँ कारज भये नृप जोगी, छाडै भोग-विलासा रे । 
सेज सिंहासन बैठे रहते, भसम लगाय उदासा रे ॥३॥ 
गोरखनाथ भरथरी रसिया, सोहि कबीर अभ्यासा रे । 
गुरु-दादू परसाद कछु इक, पायौ "सुन्दरदासा" रे ॥४॥

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