#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
हरि नाम का आश्रय प्रमाद नहीं है, समस्या के समाधान का महा प्रयत्न है.
Refuge in God's name is not laziness, but is the ultimate effort to solve a problem.
~ Param Poojya Morari Bapu
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१६८. नाम महिमा(श्री दादूवाणी)
अहो नर नीका है हरि नाम ।
दूजा नहीं राम बिन नीका, कहले केवल राम ॥टेक॥
निर्मल सदा एक अविनाशी, अजर अकल रस ऐसा ।
दिढ़ गहि राख मूल मन मांहीं, निरख देख निज कैसा ॥१॥
यहु रस मीठा महा अमीरस, अमर अनूपम पीवे ।
राता रहै प्रेम सौं माता, ऐसे जुग - जुग जीवे ॥२॥
दूजा नहीं और को ऐसा, गुरु अंजन कर सूझे ।
दादू मोटे भाग हमारे, दास विवेकी बूझे ॥३॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव नाम महिमा दिखा रहे हैं कि हे जिज्ञासुओं ! हरि परमेश्वर का नाम - स्मरण सब साधनों में सुगम साधन है । नाम - स्मरण और बहिरंग साधन के बिना जीव का उद्धार नहीं कर सकते, इसलिये निष्काम भाव से केवल राम - नाम का स्मरण कर । जो सदा माया आदि मल रहित, अविनाशी, अजर, अमर, कला - अवयव रहित, सब का मूल कारण एक ब्रह्म है, उसको नाम - स्मरण के द्वारा मन से दृढ़ता पूर्वक ग्रहण कर और ज्ञान रूपी नेत्रों से उस निजस्वरूप को देख ।
कैसा अलोकिक है ? यह पराभक्ति रूप महा अमृतरस, सम्पूर्ण रसों में अति मीठा सुख रूप है । जो इस अनूप अमृत - रस को पीता है, वही अमर होता है । इस रस में राता = रत्त और प्रेम से माता = मतवाला होता है, वही जुग - जुग में सजीवन रूप होता है । हे जिज्ञासुओं ! ऐसा अमृत - रस और कहीं नहीं है, परन्तु जो मुमुक्षु गुरु का ज्ञान रूपी अंजन, विवेक - विचार रूप नेत्रों में आंजते हैं, उन्हीं को यह दिखाई पड़ता है । जिन मुमुक्षुओं के मोटे भाग्य हैं, वही इस रस को समझते हैं ।
‘‘वद जिह्वे वद जिह्वे वद श्रीराम रामेति ।
पुनरपि जिह्वे वद वद जिह्वे वद श्रीराम रामेति ॥१६८॥’’
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