गुरुवार, 21 नवंबर 2013

सबै दिशा सो सारिखा.४/२१४


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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*परिचय का अंग ४/२१४*
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*दादू - सबै दिशा सो सारिखा, सबै दिशा मुख बैन ।*
*सबै दिशा श्रवण हूँ सुने सबै दिशा कर नैन ॥२१४॥*
दृष्टांत - 
बालखिल्य डूबत गहे, कर भुज साठ हजार ।
बेर लिये शवरी दिय, अंगद को नग धार ॥१६॥
ब्रह्मा के मानस पुत्र ऋतु ॠषि के पुत्र बालखिल्य हैं और संख्या में साठ हजार हैं तथा उनके शरीर अंगुष्ठ प्रमाण जितने छोटे हैं । बालखिल्य जब कश्यप ॠषि के यहां अध्ययन कर रहे थे तह एक दिन कश्यपजी ने सब छात्रों को कहा - समिधायें कम ही हो गई हैं । अतः सब छात्र अपनी शक्ति के अनुसार कल समिधायें लेकर आना । यह सुनकर इन्द्र ने बालखिल्यों से कहा - आप लोगों के शरीर अति लघु हैं, अतः आप लोगों को समिधा लाना कठिन पड़ेगा । इससे आप लोगों के हिस्से की समिधायें मैं ले आऊंगा । बालखिल्य नट गये और कहा - यह सेवा तो हम से होगी वैसी हम ही करेंगे । 
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इससे इन्द्र रुष्ट हो गये और बालखिल्य जब समिधायें लाने वन में गये तो इन्द्र ने भारी वर्षा आरम्भ कर दी । बालखिल्यों में भारी विपत्ति आ गई । क्योंकि उनके शरीर तो गाय के खुर के खड्डे में भी डूब जायें ऐसे थे । उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की । तब तत्काल ही ईश्वर ने साठ हजार भुजाओं वाला शरीर प्रकट करके दो - दो को एक - एक हाथ में उठाकर उन पर एक - एक हाथ छाता के समान कर दिया । फिर इन्द्र उनका कु़छ भी नहीं बिगाड़ सके । साखी में सर्व दिशा श्रवणों सुने और दिशा कर पर यह दृष्टांत है ।
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दूसरा दृष्टांत - बेर लिये शवरी दिये - भगवान् राम ने जब शवरी की कुटिया पर जाने का विचार किया तो पहले उसकी परिक्षा लेना चाहा । शवरी रामजी के लिये बेर संग्रह कर रही थी । तह रामजी एक भील के रूप में शवरी के पास आकर बोले - मुझे भूख लगी है, एक अंजलि बेर मुझे दे । शवरी - ये तो भगवान् राम के लिये हैं, तुम बेरड़ा से तोड़ लो ।
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भील यदि तुम नहीं दोगी तो दंडे मारकर सब छीन लूंगा । शवरी ने सोचा - यह कुजन है, जैसा कहता है वैसा कर भी सकता है । यदि इसके दंडों के आघातों से मेर दुर्बल शरीर के प्राण निकल गये तो मैं रामजी के दर्शन बिना ही रह जाऊंगी और रामजी तो सर्वत्र व्यापक हैं । अतः रामजी के लिये संग्रह किये हुये बेर तो उनके समर्पण कर दूं फिर होगा जो हो जायेगा । 
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फिर वह यह बोलकर कि - भगवान् राम ये बेर आपके अर्पण है, इन्हें स्वीकार करिये । आकश में उछाल दिये । तब तत्काल राम ने जितने बेर थे उतने ही हाथों वाला रूप बनाकर शवरी के सब बेर हाथों में झेल कर पा लिये थे । उक्त कथा भी सर्व दिशा कर पर ही है ।
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तीसरा दृष्टांत - अंगद को नग धार - अंगदसिंह सनगढ़ के राजा दीनसलाहसिंह के भतीजे थे । एक समय दीनसलाहसिंह से अन्य राजा ने युद्ध छेड़ दिया । उस युद्ध में अंगदसिंह ही सेनापति होकर गये और अंगदसिंह की विजय हुई । शत्रु राजा का टोप अंगदसिंह के हाथ लगा । उसे में १०१ बहुमूल्य रत्न लगे थे । उनमें एक अनमोल हीरा था । उसे अंगदसिंह जगन्नाथजी के समर्पण करने को अपने पास रख लिया था । 
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राजा ने उसे प्राप्त करने को नाना षड़यन्त्र भी रचे किन्तु हीरा हाथ न लगा । तब अंगदसिंह ने सोचा - अब पुरी चलकर हीरा जगन्नाथजी को समर्पण करना ही अच्छा है । वे चल दिये, राजा ने उनके पीछे हीरा छीनने को सेना लगा दी । अंगदसिंह एक पहर प्रतिदिन प्रातः भगवान् का भजन करते थे । 
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मार्ग में एक तालाब पर भजन कर रहे थे कि सेना ने उनको आ घेरा । तब भजन करके वह हीरा भगवान् को जल रूप मानकर तथा उनके सब दिशाओं में हाथ हैं यह सोचकर कहा - भगवान् जगन्नाथजी यह हीरा आपके अर्पण है । यह कहकर उसे जल में फैंक दिया । 
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फिर अंगदसिंह को छोड़कर हीरा तालाब से निकालने को जल छाना और कीचड़ भी छान लिया तब भी हीरा नहीं मिला । जगन्नाथजी ने स्वप्न में अंगदसिंह को कहा - तुम्हारा हीरा मैंने स्वीकार कर लिया है । तुम पुरी में आकर देखो । पुरी में जाकर अंगदसिंह ने देखा कि वह हीरा जगन्नाथजी के कंठ में है ।
उक्त कथायें साखी के उत्तरार्ध पर ही हैं । अंगतसिंह की विशेष कथा भक्तमाल अथवा संतमाल में देखें ।
(क्रमशः)

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