बुधवार, 6 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(१७/१८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*दादू चौड़े में आनन्द है, नाम धर्‍या रणजीत ।*
*साहिब अपना कर लिया, अन्तरगत की प्रीति ॥१७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! भेदभाव से रहित, निर्द्वन्द्व निष्पक्ष अवस्था में आनन्द है । उसी ने अपना ‘रणजीत’ कहिये, आसुरी सम्पदा के गुणों को जीतने वाला, शूरवीर नाम सार्थक किया है । उसने अन्तःकरण की प्रीति से परमेश्‍वर को अपना बना लिया है ॥१७॥
कबीर शूरा शीश उतारिया, छाड़ी तन की आस । 
आगे तैं हरि हरषिया, आवत देख्या दास ॥
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*दादू जे तुझ काम करीम सौं, तो चौहट चढ़ कर नाच ।*
*झूठा है सो जाइगा, निहचै रहसी साच ॥१८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासु ! यदि तूं कृपालु परमेश्‍वर के दर्शन करना रूपी काम को पूरा करना चाहता है तो, चतुष्टय अन्तःकरण को एकाग्र करके, वृत्ति को समष्टि चेतन से मिला कर, स्वस्वरूप में स्थिर करना रूपी ध्यान अर्थात् नृत्य कर ॥१८॥
पीपा के तिय दोइ दश, चली बरजते लार । 
मध्य बजार अर्ध कामरी, सब गई सीतां धार ॥
दृष्टान्त ~ गढ गागरोन के राजा पीपा जी महाराज भक्त थे । जब आपको राज्य से वैराग्य हो गया, तब रामानन्द स्वामी का उपदेश ग्रहण करके संत बन गये । इनके द्वादश रानियां थी । जब उन्होंने सुना तो वे सब की सब आईं और बोलीं ~ हमें भी संत बना लो । रामानन्द स्वामी बोले ~ आप लोग राज में रह कर राज भोग भोगो । आपका प्रारब्ध निवृत्ति का नहीं है । जब वे नहीं मानी, तब बारह कम्बल बहुत छनछने मंगाये और बीच से फाड़ फाड़ कर बोले कि ये गहने वस्त्र उतारो और एक - एक गले में पहनती जाओ । तब आमने - सामने देखने लगी, और ग्यारह तो महलों में वापिस चली गईं और सीता देवी ने तत्काल गहने वस्त्र उतार कर कफनी को गले में पहन कर, गुरु महाराज को नमस्कार किया । फिर भक्त पीपा जी और माता सीता जी भारतवर्ष में भगवान कृष्ण की भक्ति द्वारा बड़े - बड़े पापी और दुष्टों को पवित्र बनाकर करोड़ों मनुष्यों का उद्धार किया और माता सीता ने भक्ति रूपी नृत्य किया भगवान के सामने ।
(क्रमशः)

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