बुधवार, 6 नवंबर 2013

दादू यह तन पिंजरा २/८९


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 #श्रीदादूवाणी०प्रवचन०पद्धति 卐* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*स्मरण का अंग २/८९*
*दादू यह तन पिंजरा, मांही मन सूवा ।*
*एक नाम अल्लाह का, पढ़ हाफिज हुवा ॥८९॥* 
हे जिज्ञासुओं ! हमारा यह मनुष्य शरीर तो पिंजरा है और यह मन इसमें तोता हैं । यह तोता अल्लाह का जो एक नाम "अलिफ'' है, उसको पढ़ करके हाफिज कहिए आत्मज्ञानी हुआ है । इसलिए हम अब मायावी सूवे और पिंजरे का क्या करे ?॥८९॥ 
("हाफिज़'' शब्द अरबी शब्द "हिफ्ज'' से बना है, जिसका अर्थ है कंठस्थ करना । कुरान शरीफ के ३० अध्यायों को कंठस्थ करके सुनाने वाले इमाम को हाफिज कहा जाता है । कुरान कंठस्थ करना बहुत कठिन कार्य है । कोई कुशाग्र-बुद्धि ही ऐसा कर सकता है ।) 
गुरु दादू अकबर मिले, कही सूवो ले जाह । 
हमरे मन तोता पढ़े, सुनो अकबर शाह ॥ 
दृष्टांत ~ ब्रह्मर्षि दादू दयाल महाराज आमेर में विराजते थे । आमेर के राजा भगवत्दास के द्वारा अकबर ने गुरुदेव को दर्शनों के लिए सीकरी बुलाया । सीकरी में ब्रह्मर्षि ४९ रोज बिराजे । नौ प्रश्न अकबर ने किए और ४० प्रश्न विद्यापति बीरबल ने गुरुदेव से किए । यथायोग्य सभी प्रश्नों का ब्रह्मर्षि ने समाधान किया । जब बादशाह अकबर और विद्यापति बीरबल का दादू दयाल में पूर्ण दृढ़ विश्वास हो गया और यह जान लिया कि यह निरपेक्ष परमात्मा को बताने वाले सच्चे महापुरुष हैं, तो अकबर और बीरबल ने ब्रह्मर्षि को गुरु स्वीकार कर लिया । अकबर बोला : 
दादू नूर अल्लाह है, दादू नूर खूदाह । 
दादू मेरा पीर है, कहै अकबर शाह ॥ 
जब ब्रह्मर्षि ने अपने उपदेशों से गौवध बन्द कराया और हिन्दू मुस्लिम की विषमता अकबर के दिल से दूर कर दी, तब अकबर हिन्दू और मुसलमानों को ईश्वर के पुत्र समझने लगा और सबके साथ समान व्यवहार करने लगा । अकबर ने दादू दयाल जी महाराज का अद्वैत लक्ष्य प्राप्त करके, "दीन इलाही'' मजहब स्थापित किया । इस प्रकार ब्रह्मर्षि अद्वैत तत्व के उपदेश देकर जब सीकरी से चलने लगे तब अकबर के दरबार से बादशाह की आज्ञानुसार बीरबल ने अशर्फियों के थाल ब्रह्मर्षि के समक्ष लाकर भेंट में रखे । ब्रह्मर्षि बोले :
ना लें हम कुछ सोना चाँदी, ना लें कोई(चेला) चांटी । 
तुम राजा हम अतीत, देहु विप्रन को बांटी ॥ 
यह कहकर सम्पूर्ण अशर्फियां ब्राह्मणों को बँटवा दीं और जब चलने लगे, तब बादशाह अकबर ने सोने के पिंजरे में एक सूवा सम्पूर्ण कुरान को पढ़ा हुआ जो बादशाह को कुरान सुनाता था, उस तोते को पिंजरे सहित ब्रह्मर्षि को लाकर नजर किया और कहा - महाराज इसे ले जाइये । इस तोते को कुरान-शरीफ याद है । तब महाराज ने उत्तर में पूर्वोक्त ८९ वीं साखी से उपदेश करके सीकरी से रवाना हो गए । बादशाह अकबर, बीरबल आदि ब्रह्मर्षि के चरणों में नमस्कार कर, उनके चरणों की रज मस्तक पर चढ़ाई और दाढ़ी के लगाई । 
(क्रमश:)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें