रविवार, 10 नवंबर 2013

काया मांहीं . सब घट श्रवणा ३/१३१.१३५

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*विरह का अंग ३/१३१.१३५*
.
*काया मांहीं क्यों रह्या, बिन देखे दीदार ।* 
*दादू विरही बांवरा, मरे नहीं तिहिं बार ॥१३१॥* 
दृष्टांत - 
देख पतंगे बहु जुड़े, भूंड मिला इक आय । 
जाहू दीप देख आव तू, गयो देख उठ जाय ॥१०॥ 
दादू विरही बावरा, मरे नहीं तिहिं बार इस पर दृष्टांत है - बहुत पंतगों का समूह देखकर एक भूंड(मल की गोली बनाकर गुड़ाने वाला) उनमें जा मिला । पतंगों ने पू़छा - तू कौन है ? भूंड ने कहा - पतंग हूं । यह सुनकर पतंगों ने कहा - यदि तू पतंग है तो इस ग्राम के दीपकों को गिन कर आ ।
वह गया और आकर बोला - मैं गिन आया हूँ । तब पतंगे बोले - तू पतंग नहीं है । पतंग तो एक दीपक को देखकर भी पीछा नहीं लौटता, दीपक में ही अपने प्राणों की आहुति दे देता है । वैसे ही सच्चा विरही प्रभु का दर्शन करके उसी का रूप हो जाता है । पुनः संसार में नहीं आता । 
*सब घट श्रवणा सुरति सौ, सब घट रसना बैन ।* 
*सब घट नैना हो रहै, दादू विरहा ऐन ॥१३५॥* 
दृष्टांत - 
पृथु नृप श्रवणा विष्णु से, मांगे रोम शरीर । 
कहा विष्णु दो कान में, होय सुरुचि नृप धीर ॥११॥ 
सब घट श्रवणा इस अंश पर दृष्टांत - राजा पृथु को भक्ति से प्रसन्न हो कर, भगवान् ने उनको दर्शन देकर, वर मांगने को कहा । तब पृथु ने वर मांगा - मेरे शरीर में जितने रोम हैं, उतने ही श्रवण हो जायें । फिर उनसे मैं आपका सुयश सुनता रहूंगा । 
भगवान् ने कहा - उतने श्रवण होने से शरीर कुरूप हो जायेगा किन्तु हे धीर नृप ! आपकी सुरुचि होने से रोमों के समान श्रवणों से होने वाला लाभ आपको दो श्रवणों से सुनने पर ही होता रहेगा । उक्त वर देकर भगवान् अन्तर्धान हो गये ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें