सोमवार, 11 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(२७/२८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
*शूरातन का अंग २४*
.
*दादू कोई पीछे हेला जनि करै, आगे हेला आव ।* 
*आगे एक अनूप है, नहिं पीछे का भाव ॥२७॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! ‘पीछे’ कहिए, संसार के विषय - वासनाओं का चिन्तन नहीं करें, सच्चा सेवक शूरवीर होकर गुरु उपदेश आत्म - चिन्तन के मार्ग पर दृढ़ रहें । एकत्व में आनंद है । ऐसे गुणातीत पुरुषों के अन्तःकरण में विषय - वासनाओं की फुरना नहीं होती है । वे अखंड ब्रह्माकार वृत्ति में लयलीन रहते हैं ॥२७॥ 
*पीछे को पग ना भरै, आगे को पग देइ ।* 
*दादू यहु मत शूर का, अगम ठौर को लेइ ॥२८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! पीछे को कहिये, मायिक अनात्म पदार्थों में दृढ़ता न करे । विवेक वैराग्य आदि साधनों को धारण करें । सच्चे शूरवीर साधक का यही मत हैं कि वह अगम परमेश्‍वर को अन्तःकरण रूप ठौर में प्राप्त करता है ॥२८॥ 
हरि भजतां तजतां विषै, करतां साधू सेव । 
रज्जब रहता इहि जुगति, ह्वै मानुष सौं देव ॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें