शनिवार, 16 नवंबर 2013

आशिकां मस्ताने आलम ४/१४५

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*परिचय का अंग ४/१४५*
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*आशिकां मस्ताने आलम, खुरदनी दीदार ।*
*चंद रह चे कार दादू, यार मां दिलदार ॥१४५॥*
दृष्टांत - 
एक छुवारा हाथ ले, चिला किया इक शेख ।
गर्व दूर किया तासुका, बन्दे दिखा अनेक ॥६॥
एक शेख(पैगम्बर मुहम्मद के वंशज) मुसल्मान ने चिल्ला(४० दिन का व्रत - रोजा) किया था । रोजा खोलने के समय अपने घर के द्वार के बाहर बैठकर एक छुहारा खाकर पानी पी लेता था । उक्त प्रकार ३९ दिन उसके निकल गये तब उसे गर्व हो गया कि मेरे समान चिल्ला कौन कर सकता है ? 
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ईश्वर ने उसका गर्व दूर करने के लिये ४० वें दिन एक ऊंटों का कतार जिस के प्रत्येक ऊंट पर दो दो व्यक्ति बैठे थे । उक्त शेख के घर के द्वार पर लाकर ठहरा दी । उसके ऊंटों से सब उतरे और दरी बिछाकर बैठ गये । जब चिल्ला खोलने का समय हुआ तब एक व्यक्ति ने अपनी जेब से एक छुहारा निकालकर देखा फिर दूसरे को दे दिया । 
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उक्त प्रकार सबने देखकर जिसने जेब से निकाला था उसी को पीछा लौटा दिया । यह देखकर उक्त चिल्ला करने वाले शेख ने यह सोचकर कि ये भी मुसल्मान ही हैं उनके पास जाकर पू़छा - क्या आप लोग भी रोजा करते हैं ? उन्होंने कहा - हाँ, करते हैं । शेख - मैं भी रोजा करता हूँ । किन्तु मैंने एक छुहारा खाकर ही रोजा किया है । उन्होंने कहा - हमने छुहारा खाया नहीं है, केवल देखकर ही रोजा किया है । 
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यह सुनकर शेख का गर्व दूर हो गया, उसने लज्जित होकर घर की और देखा और पुनः उन लोगों की ओर देखा तो कु़छ भी नहीं दिखाई दिया । तब शेख समझ गया कि यह खुदा ने मेरा गर्व दूर करने के लिये ही लीला रची थी । खुदा को अनेक धन्यवाद और अनेक सलाम है । उक्त १४५ की साखी में कहा है - प्रभु प्रेमी प्रभु का दर्शन रूप खुराक खाकर ही मस्त रहते हैं । वहीं ऊंटों की कतार के बन्दों द्वारा समझाया है । इस अंश पर उक्त दृष्टांत है ।

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