शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

अट्ठे पहर अर्श में.४/२३३

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*परिचय का अंग ४/२३३*
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*अट्ठे पहर अर्श में, जिन्हीं रुह रहंनि ।*
*दादू पसे तिन्नके, गुझ्यू गाल्ही कंनि ॥२३३॥*
दृष्टांत - 
भया प्रसन्न इक जाट पै, पातशाह सब शीश ।
एक बार तुम कान लगि, और न विसवा बीस ॥१८॥
एक बादशार शिकार के निमित्त वन में गया था । शिकार के पीछे अत्यधिक घोड़ा दौड़ाने से सैनिकों से अलग हो गया और भूख प्यास से भी व्याकुल हो गया था । वह एक जाट के खेत में जा पहुँचा, जाट ने उसका सत्कार किया । बादशाह ने उससे पानी माँगा । जाट ने उसे एक मतीरा खिलाया । उससे बादशाह की भूख, प्यास मिट कर तृप्ति आ गई । बादशाह जाने लगा तब जाट से बोला - आज से तुम मेरे मित्र हो गये हो । कभी मेरे यहां भी आना । .
फिर बादशाह ने अपने हाथ से अपना नाम ग्राम आदि पता उसे लिख कर दे दिया और कहा - नगर में जिसका यह दिखाओंगे वह तुम को मेरे पास पहुँचा देगा । अगले वर्ष वर्षा नहीं होने से खेती नहीं हुई तब जाट ने सोचा - मित्र के पास चलें कु़छ मिलेगा उससे काल का समय निकल जायगा । जाट बादशाह की राजधानी में गया और उक्त पता आदि बताया । तब लोगों ने उसे बादशाह के पास पहुँचा दिया । 
दूसरे दिन बादशाह ने जाट को राजसभा में मित्र के समान पास बैठाया और धीरे से कहा - कहो क्या चाहते हो । जाट समझ गया कि बादशाह के कान में बात करने से सब सभा वाले मुझ से डरकर मुझे प्रसन्न रखने को धन देंगे । अतः जाट ने कहा । मुझे भरी सभा में आपके कान में बात कहने दें । मै जब तक आपके कान के पास अपना मुख रक्खू तब तक आप कान को हटाना नहीं । यही बीसों विसवा मैं चाहता हूं और कु़छ भी नहीं चाहता । अतः आप यही मान लें । बादशाह ने वैसा ही किया । 
इससे सब जाट के पास धन लेकर उसे अनुकूल रखने की बातें कहने उसके पास गये । इससे बिना मांगे ही बहुत धन मिल गया, वैसे ही जो जन हृदय आकास में परमात्मा से गूढ विचार रूप बातें करते हैं, उनको किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहती । 
यह दृष्टांत साखी के - गुझ्यू गालही कंनि पर है ।

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