मंगलवार, 5 नवंबर 2013

पढि पढि थाके पंडिता २/८६

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साभार ~ *"श्री दादूवाणी प्रवचन पद्धति"*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*स्मरण का अंग २/८६*
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*पढि पढि थाके पंडिता, किनहुँ न पाया पार ।*
*कथि कथि थाके मुनिजना, दादू नाम आधार ॥८६॥*
उक्त साखी के पूर्वार्ध पर दृष्टांत - 
बृहस्पति गुरु पै, इन्द्र पढ़ गर्व भयो मन मांहिं ।
समुद्र कुम्भ अरु सींक ज्यों, किंचित तूने पाहिं ॥१५॥
एक समय दैवगुरु बृहस्पति इन्द्र के पास गये तब इन्द्र ने यह सोच कर कि जितनी विद्या गुरु जानते हैं उतनी मैं भी जानता हूं । अतः दोनों बराबर हैं फिर उठ कर प्रणाम करने की क्या आवश्यकता है ? उठ कर बृहस्पति को प्रणाम नहीं किया । गुरु समझ गये कि इसे विद्या का अभिमान हो गय है । 
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गुरु ने समुद्र से एक जल का घड़ा मँगवा कर अपने और इन्द्र के बीच में रखा और उसे में एक सींक डूबो कर उंची उठाकर कहा - इन्द्र ! विद्या समुद्र के समान अपार है । मैंने इस घट जितनी प्राप्त की है और तुम को इस सींक पर लटकती हुई बिन्दु के समान दी है । अतः तुम्हें विद्या का गर्व मिथ्या ही है । इन्द्र भी समझ गये और विद्या का अहंकार छोड कर गुरुजी को प्रणाम किया तथा क्षमा याचना भी की ।
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साखी के उत्तरार्ध पर दृष्टांत -
मिश्र कथा बहुत हि करी, रह्यो बार को बार ।
नाम सु निश्चय धारि के, भई गुजरी पार ॥१६॥
एक गुजरी यमुना पार से मथुरा में दूध बेचने आती थी । मार्ग पर एक मिश्र कथा करते थे । एक दिन वह गूजरी भी कथा सुनने को खड़ी हो गई । उस समय प्रसंग था कि राम नाम संसार - सागर से पार कर देता है । यह सुनकर गुजरी ने विचार किया - जब राम नाम संसार सागर से पार कर देता है तब यमुना से पार करना तो क्या बड़ी बात है । आज मैं नौका के घाट न जाकर सीधी अपने ग्राम की और चलूंगी और राम राम करते हुये यमुना से पार हो जाऊंगी ।
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फिर वह अपने ग्राम के बराबर जाकर राम राम करती हुई यमुना के जल पर स्थल के समान चल कर ग्राम में पहुंच गई । कु़छ दिन बाद उसने सोचा - जिन पंडितजी की कृपा से अपने नौका का किराय बचने लगा है उन को एक दिन खीर का भोजन तो कराना ही चाहिये । दूसर दिन उसने मिश्र को निमंत्रण दिया । मिश्र ने मान लिया । 
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लौटने लगी तब पंडित जी को कहा - चलो ! वे उसके पीछे पीछे चले किन्तु वह नौका के घाट को छोड़ कर आगे जाने लगी तब पंडित ने कहा - नौका पीछे रह गई है आगे कैसे जा रही हो ? गूजरी - नौका तो अपने पास ही है । पंडित ने सोचा - इनके ग्राम की स्वतंत्र नौका होगी । आगे ग्राम के बराबर जाकर गूजरी जल पर स्थल के समान चलकर - यमुना से पार हो गई और पंडित तट पर खड़ा ही रहा । गूजरी ने कहा - आ जाओ । पंडित - नौका बिना डूब जाऊंगा । गूजरी - राम राम करते हुये आ जाओ । आपने ही तो मुझे बताया था कि राम नाम नौका है । पंडित ने साहस करके पहले अपनी धोती ऊंची उठाई किन्तु वे थल के समान नहीं चल सके और कमर तक पानी में जाकर लौट गये । कारण ? ये कहते ही थे, इन में निश्चय नहीं था और गूजरी में पूर्ण निश्चय था ।

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