मंगलवार, 5 नवंबर 2013

श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता(च.दि.- १७/२५)


卐 दादूराम~सत्यराम 卐
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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
चतुर्थ दिन ~ 
आं. वृ. -
शुभ इच्छा तुझ में जगी, सखी ! भाग्य की बात ।
आसुर गुण तज स्रदय से, होगा अति कुशलात ॥१७॥
वा. वृ. - 
वे क्या हैं सखि ! बता तू, मैं जानत हूं नांहि ।
बचनामृत तव श्रवण की, चाह लगी मन मांहि ॥१८॥
अब तो मम मन चाहता, अधिक रहूं तव पास ।
बचन तुम्हारे श्रवण कर, होता हिय उल्लास ॥१९॥
आं. वृ. - 
सखी ! सत्य तू कहत है, सुसंग से आनन्द ।
होत सभी को ही सदा, सुधर जात है मंद ॥२०॥
समय हो गया सहेली, अब तुम जाओ आज ।
फिर कल आना गेह के, कर के सब ही काज ॥२१॥
तभी कहूंगी यह विषय, सुनना तू मन लाय ।
धारण करना सहज ही, सब विक्षेप पलाय ॥२२॥
वा. वृ. - 
सखी आज तो गमन हित, करता नहिं है चित्त ।
किन्तु गेह के काम भी, करने पड़ते नित्त ॥२३॥
कवि -
कर प्रणाम बाहिर गई, मन तो आंतर पास ।
जाय सुनूंगी प्रात फिर, हिय में ऐसी आस ॥२४॥
थक करत व्यवहार के, नाना विधि के काम ।
सो कर सुषुप्ति में गई, करन लगी विश्राम ॥२५॥
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इति श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता में चतुर्थ दिन वार्ता समाप्त

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