मंगलवार, 5 नवंबर 2013

= प. त./१४-५ =

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचम - तरंग” १४/१५)* 
*शिष्य प्रयागदास - प्रकरण* 
नाम सुन्यो अपने पुर गुरु को, 
जाति महेश्वरि गोत्र बियाणी । 
सांभर आय पर्यो चरणां मधि, 
दे परिदक्षिण जोरत पाणी । 
शीश धर्यो कर मंत्र सुनावत, 
दे उपदेश कियो सुध ज्ञानी । 
पाय रजा पुनिआ डिडवान हि, 
पाठ पढे गुरु दादु की बाणी ॥१४॥ 
माहेश्वरी वैश्य जाति के वियाणी - गोत्रीय प्रयागदास ने अपने पुर में श्री दादूजी का नाम सुना । दर्शनोत्कंठा से साँभर आकर गुरुचरणों में शीष निवाया । परिदक्षिणा करके हाथ जोड़े खड़े हो गये । तब स्वामीजी ने सिर पर हाथ धरा, गुरुमंत्र सुनाकर शुद्ध ज्ञानी बना दिया । फिर गुरु आज्ञा पाकर वे, डीडवाने विराजे और गुरुवाणी का नित्य पाठ करते हुये अपना कल्याण किया ॥१४॥ 
*मनोहर छन्द* 
*शिष्य बनवारीदास जी* 
बाबा बनवारी जन, लघु भ्रात हरि गिरि, 
ग्राम रतिया सें आय, सांभर गुरु धारिये ।
टीलाजी सुचांदा जान, जग्गाजी सुसिद्ध मान, 
झांझूजी अरु बांझूजी प्रागटांग पारिये । 
बखनां शंकर पाक बड़ो ही गोपालदास, 
माधो अरु परमानंद शिष्य एते ठारिये । 
मंत्र गुरु दादु सुनि बावन में नाम गिने, 
साधुन प्रसिद्ध होत ज्ञान गुण तारिये ॥१५॥ 
ग्राम रतिया से आकर बनवारी गिरि और लघुभ्राता हरिगिरि भी श्री दादूजी के शिष्य बन गये । टीला जी, चाँदाजी, जग्गाजी, झाँझूजी, बाँझूजी, प्रागटांकजी, बखना जी, शंकरजी, बड़े गोपालदास जी, माधोजी, परमानन्दजी ये सब स्वामीजी से मंत्रदीक्षा लेकर प्रमुख बावन शिष्यों में प्रसिद्ध हुये ॥१५॥ 
(क्रमशः)

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