मंगलवार, 5 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(१५/१६)


॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*कायर काम न आवही, यहु शूरे का खेत ।*
*तन मन सौंपै राम को, दादू शीश सहेत ॥१५॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! रण भूमि का मैदान सच्चे शूरवीरों का युद्ध स्थल है । यहाँ कायर पुरुष नहीं रुकेंगे । अर्थात् इसी प्रकार विषयी, अहंकारी, मनुष्य इस साधना क्षेत्र में काम नहीं आवेंगे । किन्तु जो साधक आपा सहित तन - मन प्रभु के अर्पण करता है, उसी को धन्य है ॥१५॥ 
ठाकुर ग्रह में जे मरै, तो नहि यश को पाइ । 
जाइ युद्ध में तन तजै, तो हरि बलि बलि जाइ ॥ 
*जब लग लालच जीव का, तब लग निर्भैय हुआ न जाइ ।*
*काया माया मन तजै, तब चौड़े रहै बजाइ ॥१६॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जब तक शरीर में अध्यास है, तब तक निर्भय नहीं हो सकता । अनेक प्रकार के भय बने ही रहते हैं और जब मन, काया रूप माया की आसक्ति का त्याग करे, तब ‘चौड़े’ कहिये निर्द्वन्द्व, निष्पक्ष होकर मुक्तजन ब्रह्मभाव को प्राप्त होते हैं ॥१६॥
(क्रमशः)

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